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हमारे जीवन में अनुकूल-प्रतिकूल, उत्थान-पतन, हर्ष-विषाद जैसी स्थितियाँ आती ही रहती हैं। ये जीवन के लक्षण हैं और हमारी विवशताऎं। सामान्यत: इन स्थितियों पर विचार करने का अभ्यास एक आम आदमी को नहीं होता। परिस्थितिजन्य विवशता उसे इतना गहरे जकडे रहती हैं कि वो इनसे छिन्न होकर इनका विश्लेषण कर ही नहीं पाता और यदि करना चाहे तो शायद तब भी न कर पाये।

लेकिन ज्योतिष विद्या इन्सान की इन्ही परिस्थितियों के विश्लेषण का ही दूसरा नाम है। इस विद्या का उदेश्य ही यही है कि इसके प्रकाश में उसके जीवन की इन वर्तमान परिस्थितियों का जो हेतु है, उस मूल कारण से उसे अवगत कराना और आगामी भविष्य हेतु उसका मार्गप्रशस्त करना।

ज्योतिषशास्त्र में जन्म कुंडली, वर्ष कुंडली, प्रश्न कुंडली, गोचर तथा सामूहिक शास्त्र की विधाएँ व्यक्ति के प्रारब्ध का विचार करती हैं, उसके आधार पर उसके भविष्य के सुख-दु:ख का आंकलन किया जा सकता है। चिकित्सा ज्योतिष में इन्हीं विधाओं के सहारे रोग निर्णय करते हैं तथा उसके आधार पर उसके ज्योतिषीय कारण को दूर करने के उपाय भी किये जाते हैं।

इसलिए चिकित्सा ज्योतिष को ज्योतिष द्वारा रोग निदान की विद्या भी कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे मेडिकल ऍस्ट्रॉलॉजी (Medical Astrology) कहते हैं। इसे नैदानिक ज्योतिषशास्त्र (Clinical Astrology) तथा ज्योतिषीय विकृतिविज्ञान (Astropathology) भी कहा जा सकता है।

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