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इस घटना से महायोद्धा परशुराम का सारा घमंड सबके सामने चूर चूर हो गया था. सीता-स्वयंवर में जो कुछ भी हुआ परशुराम उससे बड़े खिन्न और दुखी थे.

परशुराम ने अपने पहले किये गये कामों को देखा तो उन्हें लगा कि इतनी वीरता दिखाने, हिंसा करने, जन्म से ब्राह्मण होने के बावजूद क्षत्रियों जैसा आचरण अपनाने का कुल नतीजा केवल इतना ही मिला कि आज एक क्षत्रिय राजकुमार ने मुझे सबके सामने नीचा दिखा दिया.

उनका मन इतना उद्विग्न था कि वह भगवान को पहचान ही नहीं पा रहे थे. उन्हें साधारण राजकुमार ही समझ रहे थे.

परशुराम ने फैसला कर लिया कि अब वह हथियारों को हाथ न लगायेंगे. धनुष बाण फरसा, तलवार जैसे अस्त्र शस्त्र छोड़ शास्त्र की शरण में जायेंगे. बल तो है ही ज्ञान भी लेंगे, पहले जो पाप हो गये उनके पछतावे के लिये कठोर तप करेंगे.

शास्त्रों की शिक्षा बिना गुरु के कैसे होगी? ऐसा सोचते हुए वे किसी योग्य गुरू की तलाश में निकल पड़े.

रास्ते में उन्हें एक अधपगला सा साधु मिला. यह दिखता तो अस्तव्यस्त था पर उसके चेहरे पर अद्भुत तेज था. परशुराम को लगा इससे कुछ बातचीत करनी चाहिये.

परशुराम ने उससे उसका नाम इत्यादि पूछा तो उसने परशुराम में कोई रुचि न दिखाई. परशुराम का स्वभाव पहले ही जैसा था.

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3 COMMENTS

    • अभी यह आईफोन के लिए नहीं है. जल्द ही उपलब्ध होगा. क्षमाप्रार्थी हैं.

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