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व्रती पुरूष मंडल में इंद्र आदिकी पूजा करें. द्वादशी को भगवान उठे, त्रयोदशी को देवताओं ने उनके दर्शन किए और चतुर्दशी को पूजन करें. उस दिन शांत और सावधानी से उपवास करें. गुरू की आज्ञा लेकर श्रीकृष्ण की प्रतिमा का षोडशोपचार पूजन करें.
रात्रि में जागरण कर भजन-कीर्तन करते रहें. प्रातःकाल उठकर नित्य नैमित्तिककर्म करें. उसके बाद हवन करें. ब्राह्मणों को भोजन कराएं, यथासंभव दक्षिणा दें. व्रती इस तरह व्रत पूर्ण करे तो उसे बैकुंठ की प्राप्ति होती है.
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