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इंद्रा सहित सभी देवता फूले न समाए. उन्होंने गणेशजी के खूब गुण गाए. उधर यह सब लीला धरती पर ही हो रही थी, चहुं ओर चर्चा थी. सो राजा वरेण्य से भी अपने बालक गजानन की लीलाएँ छिपी न रही.

उन्हें अपने बालक का महर्षि पराशर द्वारा पालन-पोषण से लेकर सिंदूरासुर के उद्धार तक की सभी लीलाएँ पता चल गयी. वरेण्य खुश भी हुए पर उससे ज्यादा उनको पछतावा था. अनजाने में हुई अपनी गलती के बारे में सोच सोचकर दुख के सागर में डूब गये.

भगवान् गजानन की कृपा से अब उनकी बुद्धि से माया का पर्दा हट चुका था. उन्होंने जंगल में फिंकवाये अपने बालक को ही नहीं अब उसकी महिमा भी पहचान ली थी. वे भागते हुये भगवान् गजानन के पास पहुँचे.

गणेशजी के सामने पड़ते ही कहने लगे- प्रभु! मैं अज्ञानी आपकी कृपा को समझ न सका. आखिर मेरे जैसा अज्ञानी पुरुष आपके उस रूप को कैसे पहचान भी कैसे पाता. माया से मोहित हो मैंने अनर्थ कर डाला. मुझे क्षमा कर दें.

गजानन अपने पिता वरेण्य के वचन सुनकर प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा वरेण्य को उनके पिछले जन्म के वरदान की याद दिलाया. फिर बोले, पिता जी मेरा यहां का काम समाप्त हुआ. अब आज्ञा दीजिये तो अपने धाम जाऊं.

गजानन गणेश के अपने धाम लौटने की बात सुन कर गणेश भक्त राजा वरेण्य व्याकुल हो उठे. आंखों में आंसू आ गये. वे गणेशजी से विनती करते हुए बोले- ‘आप जैसा चाहें पर इससे पहले! मेरा अज्ञान दूर कर मुझे मुक्ति मार्ग दिखा दें.’

राजा वरेण्य की प्रार्थना पर भगवान गणेश ने उन्हें मुक्ति और मोक्ष का रास्ता दिखाने वाला ज्ञान देना स्वीकार कर लिया. गणेश जी ने राजा वरेण्य को जो ज्ञान उपदेश दिया वही आज गणेश-गीता के नाम से प्रसिद्ध है.

हम पहले क्या थे और आगे हमारा क्या होगा? कौन नहीं जानना चाहता. गणेश गीता अपने चौथे अध्याय में वैध संन्यास योग के जरिये बताती है कि सिर्फ योग और प्राणायाम करके ही आप बिना किसी ज्योतिषी या पंडित के भूत और भविष्य आसानी से जान सकते हैं.

कल्पवृक्ष प्रलय काल में भी नष्ट नहीं होता, कल्पवृक्ष देवराज इंद्र के वहां फल फूल रहा है. लेकिन धरती पर कल्पवृक्ष का पता बताते हैं भगवान गणेश इसी गणेश गीता में. और यह भी कि अपने भीतर कैसे उगायें कल्पवृक्ष. इस अद्भुत गीता को अवश्य पढना चाहिये.

स्रोत : गणेश पुराण
संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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