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बजरंगबली ने श्रीराम नाम का स्मरण किया और अपने विशाल नाखूनों से सीना चीर दिया. उसमें प्रभु श्रीराम और देवी सीता स्पष्ट नजर आ रहे थे. विभीषण हनुमानजी के पैरों में लोटकर क्षमा मांगने लगे. हनुमानजी के सीने से बहते खून की धारा को देखकर माता सीता विलाप करने लगीं. भगवान श्रीराम ने बजरंगबली के शरीर पर हाथ फेरा और वह फिर से स्वस्थ हो गए. चारों तरफ हनुमानजी की जय-जयकार होने लगी.

प्रभु ने पूछा कि पवनसुत आपने ऐसा क्यों किया? तब उन्होंने कहा कि मुझे आपके चरणों की सेवा का उपहार चाहिए. यह सांसारिक उपहार मेरे किस काम का? हनुमानजी की इस भक्त से प्रसन्न होकर भगवान श्रीराम ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि आपको कभी कोई आघात नहीं होगा. भगवान श्रीकृष्ण ने इसीलिए अर्जुन से कहा था कि वह हनुमानजी को प्रसन्नकर उन्हें अपने रथ के ऊपर विराजमान होने का आशीर्वाद मांग ले क्योंकि हनुमानजी जिस रथ पर विराजमान होंगे उस रथ पर किसी भी तरह के अस्त्र-शस्त्र के प्रयोग से कोई आघात नहीं होगा.
पवनसुत हनुमान की जय. जय-जय सीताराम

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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