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पर्वतराज के मुख से यह सब सुनकर मैं अपने पिता ब्रह्माजी के पास चला. ब्रह्मलोक पहुंचकर मैंने सारी बात कही.

मैंने उनसे कहा- देव-दानव, सब आपकी पूजा करते हैं, आपने समूची सृष्टि रची आपकी तुलना किससे हो सकती है! आप ही आश्चर्यचकित कर देने वाले और धन्य हैं.

ब्रह्माजी ने कहा- नहीं, धन्य तो वे वेद हैं जिसके अनुरूप यज्ञ होते हैं, देवताओं को भोजन या हविष मिलता है. संसार का संरक्षण होता है. यह सुनकर मैंने वेदों के पास जाने की तैयारी की.

मैं वेदों के पास गया और उनकी प्रशंसा की तो वेदों ने कहा-नारद सच तो यह है कि मुझसे श्रेष्ठ और आश्चर्यचकित करने वाले तो यज्ञ हैं. तुम उनके पास जाओ. मैं यज्ञों के पास गया.

यज्ञ बोले- हम लोगों के आराध्य तो भगवन विष्णु हैं जो हमारी अंतिम परिणति हैं. हम नहीं भगवान विष्णु ही समस्त आश्चर्यों के जन्मदाता और धन्य हैं. अब मैं भगवान विष्णु की खोज में निकला.

भगवान विष्णु की खोज में आप तक पहुंचा और आपने बता दिया कि आप दक्षिणाओं के साथ आश्चर्य और धन्य हैं. निस्संदेह ही दक्षिणाओं के साथ भगवान विष्णु ही समस्त यज्ञों की अंतिम गति हैं.

तो अब इसी बिंदु पर मेरे प्रश्न का उत्तर मिल गया. मेरे मन की दुविधा समाप्त हो गई है. अब मैं अपने लोक जा रहा हूं. यह कहकर महर्षि नारद अपने लोक चले गये.

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