माता पार्वती की सखियां जया और विजया पार्वतीजी से अक्सर कहा करती थीं कि उनका कोई खास गण होना चाहिए जो बस उनकी ही आज्ञा माने. इससे माता के मन में भी बार-बार यह विचार आता रहता था.

महादेव भी उनकी इच्छा को ताड़ गए थे. उन्होंने माया रची और पार्वतीजी के मन में फिर एक बार पुत्र प्राप्ति की इच्छा बलवती हुई. इस बार इन्हें विचार आया कि उनका एक ऐसा पुत्र होना चाहिए जो सभी देवताओं के सर्वाधिक प्रिय हो.

सबके द्वारा पूजित-सम्मानित हो. पार्वतीजी ने अपनी यह इच्छा भगवान शिव को बताई. महादेव ने कुछ सोचकर कहा- ऐसे श्रेष्ठ पुत्र की आकांक्षा है तो फिर पुष्पक व्रत रखो. उसी से यह संभव हो सकेगा.

पार्वती ने पुष्पक व्रत का अनुष्ठान करने का संकल्प कर लिया. इस व्रत के विधान को समझ बूझ मां पार्वती ने उचित तिथि सुनिश्चित की और व्रत के समापन पर एक विशाल यज्ञ करवाने का निर्णय लिया.

यज्ञ में शामिल होने के लिए समस्त देवी-देवताओं को उचित प्रकार से निमंत्रण भेज दिया गया. पार्वतीजी ने विधि-विधान से पुष्पक व्रत रखा और फिर निश्चित तिथि पर यज्ञ का शुभारंभ हुआ.

भगवान शिव के वहां यज्ञ से कौन देवी देवता अनुपस्थित रहता, यज्ञमंडल सभी देवी-देवताओं की चमक से जगमगा उठा. शिवजी यज्ञ में पधारने वाले देवताओं-ऋषियों के आदर-सत्कार में लगे हुये थे.

विष्णु भगवान अभी तक नहीं आये थे. महादेव को उनकी बेसब्री से प्रतीक्षा थी पर अब तक न आने से महादेव का मन नहीं लग रहा था. थोड़ी देर बाद विष्णु भगवान अपने वाहन गरुड़ पर सवार हो आ पहुंचे.

सबने उनकी अगवानी की. सम्मान के साथ उनका स्वागत किया. ब्रह्माजी के पुत्र सनत कुमार यज्ञ की पुरोहिताई कर रहे थे. शीघ्र ही वेद मंत्रों की ध्वनि गूंजने लगी, यज्ञ नियत समय पर आरंभ हुआ और समय से पूर्ण हो गया.

यज्ञ की समाप्ति पर विष्णु भगवान ने पार्वतीजी को आशीर्वाद दिया- पार्वतीजी! आपने जो अपने मन में ठाना है, जिसके लिये यह व्रत और यज्ञ किया है वह मनोकामना आपकी अवश्य पूरी होगी. आपने जैसा सोचा है उसी संकल्प के अनुरूप एक पुत्र का जन्म होगा.

देवताओं का भी यह परम पूजनीय पुत्र आपके घर में जल्द ही उदित होगा. भगवान विष्णु का अपने मनचाहा, मनोनुकूल आशीर्वाद पाकर पार्वती प्रसन्न हो गईं.

उसी समय सनतकुमार बोल उठे- क्षमा करें प्रभु पर यह कैसी उलटी रीत चला रहे हैं. मैं इस यज्ञ को संपन्न करने वाला, ऋत्विक हूं. यज्ञ सफलतापूर्वक संपन्न हो गया है, परंतु इस यज्ञ का फल फलित होगा यह आप कैसे कह सकते हैं?

भगवन, आप तो स्वयं ज्ञाता हैं. जानते ही हैं कि जब तक पुरोहित को उचित दक्षिणा देकर उसे संतुष्ट नहीं किया जाता, तब तक यज्ञकर्ता को यज्ञ का फल कभी भी प्राप्त नहीं होगा. सनत कुमार की आपत्ति पर उनकी बात स्वीकारते हुये विष्णुजी मुस्करा दिए.

पार्वतीजी ने पूछा- कहिए पुरोहित जी, आप कैसी दक्षिणा चाहते है? सनत कुमार जी सोना, धन, धान्य या क्या कुछ चाहते हैं आप पुरोहित हैं आदेश करें. हम प्रस्तुत करेंगे.

सनत जी बोले- भगवती, धन या वस्तुओं से क्या लेना देना मैं तो आपके पति देव शिवजी को ही दक्षिणा स्वरूप चाहता हूं. कृपया मुझे उन्हें दक्षिण में प्रदान कीजिये.

पार्वती को बहुत गुस्सा आया वे रोष में बोलीं- पुरोहित जी, आप जानते भी हैं कि आप क्या मांग रहे है. आप मेरा सौभाग्य मुझसे ही मांग रहे है. कोई भी नारी अपना सर्वस्व दान कर सकती है, परंतु अपना सौभाग्य कभी नहीं दे सकती. कृपया कुछ और मांग लीजिए.

परंतु सनतकुमार अपने जिद पर अड़े रहे. उन्होंने साफ साफ कह दिया कि वे लेंगे तो शिव जी को ही दक्षिणा में लेंगे, कुछ और नहीं. दक्षिणा न देने पर यज्ञ का फल पार्वतीजी को प्राप्त न होगा.

यज्ञ में आये देवताओं ने सनतकुमार को हर तरह से समझाया, पर वे अपनी बात पर डटे रहे. इस पर भगवान विष्णु ने पार्वतीजी से कहा- पुरोहितजी की यह बात सत्य है कि यदि आप पुरोहित को दक्षिणा न देंगी तो यज्ञ का फल आपको नहीं मिलेगा.

यदि इस यज्ञ का फल आपको नहीं मिला तो आपकी वह मनोकामना भी पूरी न होगी, जिसे लेकर आपने पुष्पक व्रत रखा तथा उसके समापन में यह यज्ञ कराया.

पार्वती ने दृढ़ स्वर में उत्तर दिया- हे भगवान श्रीहरि ! निःसंदेह मुझे पुत्र की कामना है किंतु मैं अपने पति से वंचित होकर पुत्र पाना नहीं चाहती. यदि पुत्र और पति में से चुनना ही है तो मुझे केवल मेरे पति ही चाहिये.

इस पूरे प्रकरण में अब तक चुपचाप रहे भगवान भोले हंसते हुये बोले- पार्वती, तुम मुझे दक्षिणा में दे दो. यह मैं कह रहा हूं. मेरा भरोसा रखो इससे तुम्हारा कोई भी अहित न होगा.

पार्वती बड़े असमंजस में पड़ी पर अब जबकि खुद भगवान शिव अपनी इच्छा जता रहे हैं और अहित न होने की बात कह रहे हैं. उन पर यकीन न करना ठीक न होगा. सो वे दक्षिणा में अपने पति को देने को तैयार हो गईं, तभी अंतरिक्ष से एक दिव्य प्रकाश वहां उतरा.

यह चौंधिया देने वाला दिव्य प्रकाश किसका था, क्या सनतकुमार अपनी दक्षिणा में शिवजी लेकर चले गए. जब शिवजी ही न रहे तो फिर कैसे जन्मे गणेश. अगले भाग में….

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

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