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श्रीराम ने अपना नेत्र निकालने के लिए एक बाण निकाला तभी देवी कात्यायनी वहां प्रकट हो गईं.
उन्होंने प्रभु के हाथ रोक दिए और कहा- त्रिभुवन के स्वामी आप यह क्यों कर रहे हैं. आपका संकल्प पूर्ण हुआ है. आपके नेत्रों की मुझे नहीं आपके भक्तों को आवश्यकता है.
श्रीराम ने कहा- आप मेरे लिए मातास्वरूपा हैं. इस संकट के क्षण में आपने जो पीड़ा दी वह एक माता के लिए उचित नहीं है. आपके कृपापात्र रावण से मेरा कोई निजी वैर नहीं. मैंने उसके सारे पाप क्षमा करके भूल सुधारने के सभी अवसर दिए.
आप से क्या छिपा, आप सर्वज्ञ हैं. आप स्वयं पापियों को दंड देती हैं. जानकी को मुक्ति दिलाने के लिए रावण का संहार आवश्यक है. मुझ पर कृपा करें और एक पापी को दंड देने में सहायक हों.
श्रीराम के वचन सुनकर कात्यायनी देवी ने कहा- हे कृपा सिंधु आप तीनों लोकों के स्वामी हैं. जानकी स्वयं पृथ्वी की अवतार हैं. आप तो स्वयं महादेव के आराध्य हैं. रावण में देवी सीता को रोकने का साहस कहां है!
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