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जो ज्ञान मुक्ति न दे वह ज्ञान नहीं. ज्ञान की परिभाषा यही है, जो मुक्त करे. इस एक बात को जितनी गहराई से संभालकर रख लें उतना ही हितकर होगा.

सत्य आपको स्वयं पाना होगा. कोई जगत में सत्य दे नहीं सकता और जब तक यह भरोसा किए बैठे हैं कि कोई आकर सत्य दे देगा, तब तक आप भटकेंगे. तब तक सावधान रहना, कहीं मनोहर धोबी के गधे न बन जाएं!

तब तक त्रिवेणी पर आते रहेंगे और आकर मौके भी गंवाते रहेंगे. संगम पर पहुंच जाओगे पर समाधि नहीं बनेगी. अंतिम ठौर परमात्मा का है. यह बात भली-भांति जानते हुए भी बार-बार उस घर के करीब आ तो जाएंगे पर हर बार भटक जाएंगे⁠⁠⁠.

-राजन प्रकाश, प्रभु शरणम् में…

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