शिव-पार्वती कथा वह शृंखला है जो MAHADEV SHIV SHAMBHU एप्पस में चलाई जा रही है. पार्वतीजी ने शिवजी के एक ऐसी कथा सुनाने का अनुरोध किया था जो लंबे समय तो चले और जिसे किसी और ने न सुनी हो.Play Store से एप्प डाउनलोड कर लें.

शिवजी नंदी को पहरे पर बिठाकर एक गुफा में गोपनीय रूप से पार्वतीजी को कथा सुनाने लगे. शिवगण पुष्पदंत से न रहा गया. उसने वेष बदला और नंदी से बचता गुफा में घुसकर चुपके से पूरी कथा सुन ली.

पार्वतीजी को जब पता चला तो उन्होंने पुष्पदंत और उसके पक्षधर माल्यवान को पृथ्वी पर जाने का शाप दे दिया. शांत होने पर पार्वतीजी ने दोनों को शापमुक्ति की राह बताई कि इस कथा का पृथ्वी पर प्रचार करो.

शिव-पार्वती कथा शृंखला में एक कथा का दूसरे से सरोकार है. आप पूरी शृंखला का आनंद लेने के लिए महादेव शिव शंभु एप्प डाउनलोड कर लें. उसी शृंखला की एक कथा फिर लेकर आए हैं. कथा आरंभ
पिछली कथा से आगे…

श्रीदत्त डाकुओं के सरदार के चंगुल में फंसा था. उस बचने की कोई सूरत नजर नहीं आ रही थी. अब उसके पास न तो विषनाशक अंगूठी थी न, मृगांक तलवार. बंधन में होने से शरीर भी क्षीण होता जा रहा था. हालांकि उसने आस न छोड़ी थी.

श्रीदत्त की बलि में अभी समय था. सरदार ने उसकी देखरेख के लिए एक दासी रख दी थी. एक दिन वह उसे खाना देने आई. उसने श्रीदत्त से कहा कि तुम हिम्मत मत हारो. तुम्हारे बचने की राह है.

सरदार की बेटी सुंदरी ने जबसे तुम्हें देखा है वह तुम पर लट्टू है. यदि तुम उससे प्रेम कर लो तो बचने की राह निकल आएगी. मरता क्या न करता. उसने सुंदरी से गंधर्व विवाह कर लिया.

अब वे चोरी छुपे खूब मिलने लगे. सुंदरी की मां को इनकी नजदीकियों का पता चल गया. उसने श्रीदत्त से कहा- यदि तुम्हारे पिता को इस खेल का पता चला तो बलि से पहले ही तुम्हें मार डालेगा.

सुंदरी को मैं किसी बहाने अभी संभाल लूंगी. जीवन रहा तो तुम उससे फिर जरूर मिल सकोगे, भाग लो. उसने श्रीदत्त को भागने में सहायता की तो वह निकल गया.

श्रीदत्त फिर वहीं पहुंचा जहां से राजकुमारी बिछुड़ी थी. वहां एक शिकारी ने बताया कि वह तुम्हारी याद में रो रही थी इसलिए मैंने उससे उसका पता पूछकर शिवदत्त नामक ब्राह्मण के घर पहुंचा दिया है.

श्रीदत्त शिवदत्त के पास पहुंचा. शिवदत्त ने बताया- मैंने तो राजकुमारी को राजा शूरसेन उपाध्याय के वहां रखवा दिया है. तुम वहीं जाकर उससे मिल लो. शूरसेन का महल दूर था, पर श्रीदत्त तुरंत चल पड़ा.

रास्ते में श्रीदत्त ने एक सुंदर तालाब देख नहाने की सोची. नहाने उतरा तो उसे एक चीज मिली जिस पर रत्नों की माला लिपटी हुई थी. अभी वह इसे देख ही रहा था कि जाने कहां से राजा के सैनिकों ने आकर उसे पकड़ लिया.

राजा के सामने पेशी हुई और श्रीदत्त की दलील सुने बिना उसे फांसी दे दी गयी. फांसी के लिये ले जाते समय वहां उपस्थित मृगांकवती ने उसे देखा तो किसी तरह यह कहकर छुड़वाया कि यह तो मेरे पति हैं.
इसी राजा के वहां श्रीदत्त का चाचा विगतभय एक राजमंत्री था. उसने श्रीदत्त को पहचान लिया. सारी कहानी पता चली तो बहुत दुःखी हुआ और उसकी सहायता करते हुए उसे पांच हजार घोड़े तथा सात हजार अशर्फियां दे दीं.

श्रीदत्त मृगांकवती के साथ मजे से रहने लगा. एक दिन विगतभय बोला- श्रीदत्त मैं तुम्हें राजा शूरसेन की बेटी से मिलने का प्रबंध करता हूं. यदि उसके साथ तुम्हारा विवाह हो जाये तो लक्ष्मी का वरदान सच हो जाये. तुम खूब धनवान बन जाओगे.

विगतभय ने श्रीदत्त को शूरसेन की बेटी से मिलवाया. दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे, शादी हो गयी. श्रीदत्त अपनी दोनों पत्नियों के साथ अवंति की और चला. रास्ते में विंध्याचल पड़ा. डाकुओं ने उसे घेरकर पकड़ लिया.

डाकुओं का सरदार उसे देवी की भेंट चढाने जा ही रह था कि एक लड़्की ने उसे बचा लिया. उसने अपने पिता से उसे छोड़ देने की फरियाद की. यह सुंदरी थी डाकू सरदार की बेटी और उसकी पूर्व प्रेमिका. सुंदरी ने अपनी प्रेमकथा पिता को सुना दी.

डाकू सरदार के कोई बेटा न था, वह बूढा हो रहा था सो उसने सुंदरी के साथ साथ सारी संपत्ति भी श्रीदत्त को सौंप दी. उसको अपनी मृगांक तलवार भी वापस मिल गयी.

अब क्या था? श्रीदत्त के पास धन बल भी था. राजा शूरसेन की सेना का साथ और उसकी तलवार भी. कुशल योद्धा तो वह था ही. विक्रमशक्ति को उसने ललकारा और उसे मार कर अपने पिता की फांसी का बदला ले लिया.

बहुत समय नहीं बीता कि अपने साहस, और कौशल के बल पर श्रीदत्त संसार के एक बड़े हिस्से पर राज करने लगा. तो महाराज इस तरह अनेक विपत्तियां आने पर उन्हें सहने और धैर्य रखने वाला पुरुष अंत में सुख और आनंद का भोग करता है.

कहानी सुनते-सुनते भोर होने को आ गयी. राजा जमदग्नि के आश्रम को चला. जमदग्नि सब जानते थे. उन्होंने तत्काल उनके पत्नी और बेटे उदयन को उनसे मिला दिया और जाने की आज्ञा भी दे दी.

सहस्रनीक सब को लेकर वापस लौटे तो राज्य में आनंद छा गया, उत्सव मनाये जाने लगे. कुछ समय बाद सहस्रनीक ने उदयन को युवराज, वसंतक, रुक्मवान और यौगंधरायण को मंत्री बनाकर स्वयं को राज्य भार से मुक्त कर लिया.

शीघ्र ही उदयन को राजगद्दी सौंपी गयी. जिस समय उदयन क राज्याभिषेक हुआ आकाशवाणी हुई कि यह समूची धरती का सम्राट बनेगा. यह सुनकर सहस्रणीक इतने प्रसन्न हुए कि अपनी पत्नी के साथ हिमालय पर तपस्या के लिए चले गए.

आगे सुनाएंगे, राजा उदयन की कथा जो शिवजी ने पार्वतीजी को सुनाई थी.

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here