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जब ब्रह्माजी और श्रीविष्णुजी के बीच संघर्ष शुरू हो गया तब शिवजी अथाह अग्निपुंज के रूप में प्रकट हुए थे और उन्हें आभास कराया था कि इस प्रकार विवाद शोभा नहीं देता. उन्होंने दोनों परमदेवों को अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी किया था.

दोनों देवों को अपनी भूल का आभास हुआ था. फिर उन्होंने शिवजी की बहुविधि वंदना-अर्चना की थी जिससे शिवजी प्रसन्न हो गए थे.

श्रीहरि विष्णु ने तब प्रसन्नभाव वाले शिवजी से पूछा था- हे देवाधिदेव! आप ऐसी विधियां बताएं जिस विधि से पूजन करके आपको शीघ्र प्रसन्न किया जा सकता है और अपनी मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं.

श्रीविष्णुजी ने बड़े विनीत भाव से शिवतत्व के बारे में भी पूछा.

उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शिवतत्व का रहस्य ब्रह्माजी और विष्णुजी को सुनाया. शिवजी ने जो ज्ञान श्रीहरि और श्रीब्रह्मा को दिया था संसार उसी विधि से शिवजी का पूजन अनंतकाल से करता आ रहा है और शिवजी उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी करते आ रहे हैं.

मैंने आपको पहले भी बताया है बाणासुर के बारे में. उसने प्रतिदिन एक करोड़ पार्थिव लिंग बनाकर उसका विधिवत पूजन करके शिवजी को अपने वश में इस प्रकार कर लिया था कि शिवजी उसके महल के रक्षक तक बन गए थे.

बाणासुर जब विश्राम करता था तो शिवजी अपने एक अंश रूप में उसकी रक्षा को तैनात रहते थे. भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र को उसने बंदी बना लिया था और यदुसेना के साथ युद्ध हो रहा था तो शिवजी बाणासुर की ओर से श्रीकृष्ण से युद्ध करने लगे.

हरेक शिवभक्त को जानना चाहिए कि शिवजी ने कौन सी विधि बताई थी पूजन की. यह ज्ञान श्रीहरि ने सनतकुमारों को दिया, फिर उनसे होता-होता नारदजी को प्राप्त हुआ था.

ये ज्ञान दुर्लभ हैं. सावन मास में और मास शिवरात्रि को इस विधि के पूजन अवश्य करना चाहिए. यह विधि बहुत ही सरल है. आप इसे पढ़ें, समझें और यथासंभव इसका पालन करें.

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