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आपने महाभारत से जुड़ी एक कथा जरूर सुनी होगी कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के आरंभ होने से पहले ही एक ऐसे तेजस्वी बालक का शीशदान में मांग लिया जो अकेला ही युद्ध का निर्णय कर देने में सक्षम था.

महाभारत सीरियल भी आपने अगर देखा हो तो कुरुक्षेत्र की रणभूमि में चल रहे युद्ध के दौरान बीच-बीच में एक शीश युद्ध में तब-तब अट्टाहास करता दिख जाता था जब-जब महान योद्धा अनीति से किसी वीर का वध करते थे.

अट्टाहास करता वह शीश स्मरण कराता था कि यह कैसा धर्मयुद्ध? जहां योद्धा धर्म का त्यागकर अधर्म पर उतारू हैं. वह शीश कोई साधारण शीश नहीं था.

वह महान शीश था मोरवीनंदन वीर बर्बरीकजी का जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने कलियुग में पूजनीय होने का वरदान दिया. आज वह श्रीश्याम बाबा के नाम से पूजे जाते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

श्रीश्याम बाबा की यह कथा तो आप जानते हैं पर आज आपको हम श्याम बाबा की वह कथा सुनाते हैं जो आपने न सुनी होगी. उन्होंने क्यों धरती पर अवतार लिया और भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे शीश का दान क्यों मांगा.

भगवान श्रीकृष्ण ने भीम के पौत्र बर्बरीक का शीश दान में मांग लिया. बर्बरीक सिद्ध अंबिकाओँ के भक्त थे और घोर तप से उन्हें प्रसन्न किया था.

जब सिद्ध अंबिकाओं ने सुना की भगवान ने उनके भक्त से शीश मांग लिया है और बर्बरीक की माता मोरवी समेत सभी पांडव शोक में डूबे हुए हैं तो वे वहां प्रकट हुईं.

सिद्ध अंबिकाओं ने वीर बर्बरीक के शोकसंतप्त परिजनों को सांत्वना देते हुए बर्बरीक के पूर्वजन्म की कथा सुनानी शुरू की.

मूर दैत्य का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत ज्यादा बढ़ गया था. मूर के पास अपिरिमित मायावी शक्तियां थींं. उन शक्तियों का प्रयोग कर वह जीवों को पीड़ित करता और लुप्त हो जाता.

ऋषियों के यज्ञ-हवन आदि में विघ्न डालकर वह बड़ा आनंदित होता. यज्ञ के लोप होने से पृथ्वी पर आसुरी शक्तियां बलिष्ठ होने लगीं, इससे देवी पृथ्वी बहुत दुखी थीं.

पीडित पृथ्वी देवसभा में गाय के रूप में अपनी फरियाद लेकर पहुंची.

पृथ्वी ने देवताओं के समक्ष अपनी करूण प्रार्थना रखी- हे देवगण! मैं सभी प्रकार का संताप सहन करने में सक्षम हूँ. पहाड़, नदी एवं समस्त मानवजाति का भार सहर्ष सहन करती हुई अपनी दैनिक क्रियाओं का संचालन करती रहती हूं पर मूर दैत्य के अत्याचारों से मैं व्यथित हूँ. इस दुराचारी से मेरी रक्षा करो, मैं आपकी शरणागत हूँ.

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