तुलसीदासजी अपने बुद्धि-विवेक से जब श्रीराम और श्रीरामनाम की महत्ता के अंतर्द्वंद्व से निकल आते हैं. उन्हें श्रीराम नाम ज्यादा प्रभावशाली और कल्याणकारी प्रतीत होता है.
ऐसा विचार करके तुलसीदास अपने प्रभु के नामजप की महत्ता का बखान आरंभ करते हैं. वह रामनाम के जप से ब्रह्मानंद के लाभ की बात कहते हैं. रामनाम कलियुग से उद्धार करने वाला है.
चौपाई :
नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी॥
सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी। नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी॥1॥
भावार्थ:- नाम ही के प्रसाद से शिवजी अविनाशी हैं और अमंगल वेष वाले होने पर भी मंगल राशि हैं यानी मंगलकारक हैं. शुकदेवजी और सनकादि सिद्ध, मुनि, योगी गण नाम के ही प्रसाद से ब्रह्मानन्द को भोगते हैं.
नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू॥
नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू। भगत सिरोमनि भे प्रहलादू॥2॥
भावार्थ- नारदजी ने नाम के प्रताप को जाना है. हरि तो समस्त संसार को प्रिय हैं. हरि को हर यानी महादेव प्यारे हैं और नारदजी हरि और हर दोनों को प्रिय हैं. नाम के जपने से प्रभु ने कृपा की जिससे प्रह्लाद, भक्त शिरोमणि हो गए.
ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ॥
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू॥3॥
भावार्थ- ध्रुव ने विमाता के वचनों से दुःखी होकर सकाम भाव से श्रीहरि नाम को जपा और उसके प्रताप से अचल अनुपम स्थान ध्रुवलोक प्राप्त किया. पवित्र नाम के स्मरण की महिमा ऐसी है कि रामनाम जप करके हनुमानजी ने श्रीरामजी को अपने वश में कर रखा है.
अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ। भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ॥
कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई। रामु न सकहिं नाम गुन गाई॥4॥
भावार्थ- नीच अजामिल, गज और गणिका भी श्रीहरि के नाम के प्रभाव से मुक्त हो गए. मैं नाम की बड़ाई कहां तक कहूं, श्रीराम भी नाम के गुणों को नहीं गा सकते.
दोहा :
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु॥26॥
भावार्थ- कलियुग में राम का नाम कल्पतरु है जो इच्छित वस्तु प्रदान करने वाला है और मुक्ति का आसरा है जिसको स्मरण करने से भाँग जैसा निकृष्ट तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया.
तुलसी कहते हैं कि जब तक उन्हें श्रीराम नाम की महिमा का बोध नहीं था वह भांग जैसी निकृष्ट वस्तु थे जिसके सेवन से मन बौराया रहता है. रामनाम जपते ही वह तुलसी जैसे पवित्र हो गए जिसके बिना प्रभु का भोग नहीं लगता.
चौपाई:
चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव बिसोका॥
बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू॥1॥
भावार्थः केवल कलियुग की ही बात नहीं है चारों युगों में, तीनों काल में और तीनों लोकों में नाम को जपकर जीव शोकरहित हुए हैं. वेद, पुराण और संतों का मत यही है कि समस्त पुण्यों का फल श्री रामजी में या राम नाम में प्रेम होना है.
ध्यानु प्रथम जुग मख बिधि दूजें। द्वापर परितोषत प्रभु पूजें॥
कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन मन मीना॥2॥
भावार्थ- पहले सत्य युग में ध्यान से, दूसरे त्रेता युग में यज्ञ से और द्वापर में पूजन से भगवान प्रसन्न होते हैं परन्तु कलियुग केवल पाप की जड़ और मलिन है.
इसमें मनुष्यों का मन पाप रूपी समुद्र में मछली बना हुआ है अर्थात पाप से कभी अलग होना ही नहीं चाहता. इससे ध्यान, यज्ञ और पूजन नहीं बन सकते.
नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला॥
राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥3॥
भावार्थ- ऐसे कराल कलियुग के काल में तो नाम ही कल्पवृक्ष है, जो स्मरण करते ही संसार के सब जंजालों को नाश कर देने वाला है. कलियुग में यह राम नाम मनोवांछित फल देने वाला है.
रामनाम परलोक का परम हितैषी और इस लोक का माता-पिता है अर्थात परलोक में भगवान का परमधाम देता है और इस लोक में माता-पिता के समान सब प्रकार से पालन और रक्षण करता है.
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू॥
कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू॥4॥
भावार्थ:-कलियुग में न कर्म है, न भक्ति है और न ज्ञान ही है, राम नाम ही एक आधार है. कपट की खान कलियुग रूपी कालनेमि के (मारने के) लिए राम नाम ही बुद्धिमान और समर्थ श्री हनुमान्जी हैं.
दोहा :
राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल॥
भावार्थ- राम नाम श्री नृसिंह भगवान है, कलियुग हिरण्यकशिपु है और रामनाम जपने वाले लोग प्रह्लाद के समान हैं. यह राम नाम देवताओं के शत्रु कलियुग रूपी दैत्य को मारकर जप करने वालों की रक्षा करेगा.
चौपाई :
भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥1॥॥
भावार्थ- रामनाम की महिमा ऐसी है कि कोई इसे प्रेम से, बैर से, क्रोध से या आलस्य से, किसी भी तरह से भी इसे जप ले तो उसका दसों दिशाओं में कल्याण होता है. उसी परम कल्याणकारी राम नाम का स्मरण करके और श्री रघुनाथजी के चरणों में शीश नवाकर मैं श्रीरामजी के गुणों का वर्णन करता हूं.