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कृष्ण जी महल की छत के एक किनारे से दूसरे किनारे को जाते हुए बोले- “ठीक है कान्हा जी. अब हम कल बात करेंगे. अर्जुन आपके निकट आ रहे हैं”.

श्रीराधे ने ऐसा कहते हुए. अपना आंचल यमुना के शांत जल में लहराया. जिस से जल में विक्षोभ उत्पन्न हुआ और वहां से कान्हा जी की छवि अदृश्य हो गयी.

उधर कान्हा जी ने चांद के सामने हाथ फेरकर उसे बादलों से ढँक दिया और राधे की छवि वहां से अदृश्य हो गयी.

अर्जुन हिम्मत करके कृष्ण के सम्मुख आए और हाथ जोड़कर बोले- “क्षमा करें प्रभु! लेकिन ऐसी कौन सी बात है. जो आपने गीता के ज्ञान में से मुझे नहीं बताई?

कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले- “याद है, अर्जुन? मैंने तुमसे कहा था कि मैं फिर तुमसे उस ज्ञान को कहूँगा जिसको जान लेने के बाद और कुछ जानना शेष नहीं रह जाता.

जिसे जान लेने के बाद मानव का वेदों से उतना ही प्रयोजन रह जाता है जितना सागर मिलने के बाद छोटे तालाब से और इतना कहकर मै चुप रह गया था.

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