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तब भगवान बोले- हे कांते तुम्हें अपना पूर्वजन्म जानने की इच्छा हुई है तो मैं उसे अवश्य पूरी करूंगा. सतयुग के अंत की बात है. मायापुरी में अत्रिगोत्र में वेदों और यज्ञों को जानने वाला देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था. वह रोज अतिथिसेवा, हवन और भगवान सूर्य की पूजा करता था.
वह सूर्य के समान तेजस्वी हो गया था. उस ब्राह्मण को बुढ़ापे में एक गुणवती नामक कन्या प्राप्त हुई. देवशर्मा ने उसका विवाह चंद्र नामक अपने शिष्य के साथ कर दिया और उसे पुत्र की भांति ही अपने पास रखा.
एक बार दोनों कुशा और यज्ञ के लिए समिधा लेने को हिमालय की तलहटी में पहुंचे. तभी उन्हें एक राक्षस अपनी ओर आता दिखा. उस राक्षस को देखकर दोनों का शरीर शून्य हो गया और वे अपनी रक्षा के लिए कोई उपाय न कर सके. राक्षस ने दोनों को मार डाला.
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