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विशालाक्षं समारुह्य रक्ष मां त्वं रसातले।
अकूपार नमस्तुभ्यं महामोह नमोस्तु ते।।10

(हे विशालाक्ष! आपको नमस्कार है. भवसागर से पार लगाने वाले हे महामीन, आप रसातल में स्थित होकर मुझ शरणागत की रक्षा करें.)

करशीर्षांगम् द्यङ्गलीषु तथा अष्टबाहु पञ्जरम्।
कृत्वा रक्षस्व मां देव नमस्ते पुरुषोत्तम।।11

(हे पुरुषोत्तम! आपको नमस्कार है. हे सत्य, आप कवच बनकर मेरी भुजा, हाथ, सिर और उगलियों की रक्षा करें.)

।।इति श्री वामनपुराणोक्तम् विष्णुपञ्जरस्तोत्रम्।।

संकलनः डॉ.नीरज त्रिवेदी
ज्योतिषाचार्य, पीएचडी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय

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