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आज हम आपको हनुमानजी की जन्मकथा सुनाने जा रहे हैं. वायु पुराण की यह कथा लंबी है. हमने इसे पहले संक्षिप्त रूप में एक बार दिया था परंतु हनुमानजी के भक्तों ने पूरी कथा की मांग की तो आज इसे विस्तृत रूप से दे रहा हूं. आनंद लीजिए हनुमान जी की जन्म कथा का.

त्रेतायुग अभी आरंभ नहीं हुआ था. भगवान विष्णु त्रेतायुग में शिवभक्त रावण के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए श्रीरामअवतार लेने वाले थे. भगवान शिव ने कैलाश पर लंबी समाधि लगाई थी.

समाधि में लीन शिवजी अचानक आंखें बंद किए ही मुस्कुराने लगे. माता पार्वती शिवजी को समाधि में इतना प्रसन्न देकखर चौंकीं. वह समझ ही नहीं पा रही थीं कि महादेव समाधि में हैं या समाधि से बाहर आ चुके हैं.

महादेव ने आंखें खोलीं. देवी ने उनकी प्रसन्नता का कारण पूछते हुए कहा- देव आपको कभी समाधि में लीन होकर इतना आत्मविभोर होते नहीं देखा. कोई खास वजह है तो मुझे बताएं. आपकी प्रसन्नता का कारण जानने की बड़ी इच्छा हो रही है.

शिवजी ने बताया- मेरे इष्ट श्रीहरि का रामावतार होने वाला है. रावण के संहार के लिए प्रभु पृथ्वी पर अवतार ले रहे हैं. अपने इष्ट की सशरीर सेवा करने का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा.

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