कल शनिवार को हनुमानजी की जयंती है. कल चंद्रग्रहण भी है इस कारण मंदिर जाना या दिन में आरती-पूजा नहीं होगी किंतु ग्रहण काल में प्रभुनाम का यथासंभव स्मरण करना चाहिए. इसलिए हम दिनभर संकटमोचन हनुमानजी की वे कथाएं सुनेंगे जो हमेशा से सुनते-सुनाते रहे हैं.

त्रेतायुग अभी आरंभ नहीं हुआ था. भगवान विष्णु त्रेतायुग में शिवभक्त रावण के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए श्रीरामअवतार लेने वाले थे. भगवान शिव ने कैलाश पर लंबी समाधि लगाई थी.

समाधि में लीन शिवजी अचानक आंखें बंद किए ही मुस्कुराने लगे. माता पार्वती शिवजी को समाधि में इतना प्रसन्न देकखर चौंकीं. वह समझ ही नहीं पा रही थीं कि महादेव समाधि में हैं या समाधि से बाहर आ चुके हैं.

महादेव ने आंखें खोलीं. देवी ने उनकी प्रसन्नता का कारण पूछते हुए कहा- देव आपको कभी समाधि में लीन होकर इतना आत्मविभोर होते नहीं देखा. कोई खास वजह है तो मुझे बताएं. आपकी प्रसन्नता का कारण जानने की बड़ी इच्छा हो रही है.

शिवजी ने बताया- मेरे इष्ट श्रीहरि का रामावतार होने वाला है. रावण के संहार के लिए प्रभु पृथ्वी पर अवतार ले रहे हैं. अपने इष्ट की सशरीर सेवा करने का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा.

पार्वतीजी इस बात से तो प्रसन्न थीं कि महादेव को वह अवसर मिलने वाला है जिसकी उन्हें लंबे समय से प्रतीक्षा थी लेकिन देवी के मन में एक दुविधा थी जिससे वह थोड़ी चिंतित थीं. शिवजी ने उनकी अप्रसन्नता का कारण पूछा.

देवी ने बताया- स्वामी आपको तो अपने इष्टदेव का सशरीर सेवा का अवसर मिल जाएगा. मेरे इष्ट तो आप हैं. इस कारण आपसे मेरा बिछोह हो जाएगा इसलिए मैं चिंतित हूं. और रावण तो आपका परम भक्त है. क्या उसके विनाश में आप सहायता करेंगे?

देवी पार्वती की शंका का समाधान करते हुए शिवजी बोले- ‘बेशक रावण मेरा परमभक्त है, लेकिन वह आचरणहीन हो गया है. उसने अपने दस शीश काटकर मेरे दस रूपों की सेवा की है, परंतु मेरा एकादश रूप तो अभी भी रावण द्वारा नहीं पूजा गया.

शिवजी ने देवी को बताया- रावण संहार में श्रीराम की सहायता के लिए मैं दस रूपों में आपके पास रहूंगा और एकादश रुद्र के अंशावतार रूप में अंजना के गर्भ से जन्म लेकर रावण के विनाश में श्रीराम का सहायक बनूंगा.

महादेव के अपने पास मौजूद रहने का वचन पाकर देवी के मन का कष्ट दूर हुआ. देवी ने महादेव से पूछा- नाथ, वह सौभाग्यशाली अंजना कौन है जिसके शरीर से स्वयं सदाशिव अवतार लेने वाले हैं. आपने रुद्रावतार के लिए अंजना को क्यों चुना हैं?

महादेव ने पार्वती को कथा सुनाई. देवराज इंद्र की सभा में पुंचिकस्थला नाम की अप्सरा थी जिसे ऋषि श्राप के कारण पृथ्वी पर वानरी बनना पड़ा. शापग्रस्त होकर वह ऋषि के चरणों में गिर गई और क्षमा याचना करने लगी.

बहुत अनुनय विनय करने पर ऋषि का क्रोध समाप्त हुआ. उन्होंने कहा- शाप खत्म नहीं किया जा सकता, संशोधन किया जा सकता है. वानर रूप में रहते हुए भी अपनी इच्छा से जब भी चाहोगी मनुष्य रूप धारण करने में समर्थ रहोगी. मेरा शाप तुम्हारे लिए वरदान साबित होगा.

यह कथा सुनाकर महादेव ने कहा- पृथ्वी पर वानर रूप में आकर पुंचिकस्थला, वानरराज केसरी की पत्नी अंजना बनीं हैं. शाप को वरदान में बदलने के लिए मेरा अंशावतार अंजना के गर्भ से होगा जो श्रीराम की सेवा करेगा.(वायु पुराण की कथा)

अगले भाग में पढ़िए हनुमानजी का राहु से युद्ध और सभी देवों के वरदान से सर्वशक्तिमान होने का प्रसंग.

संकलन व संपादन: राजन प्रकाश

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