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सभी ब्रजवासी आनन्दपूर्वक उसकी छ्त्रछाया में सुरक्षित रहे. सुदर्शन ने ब्रजमंडल में जल का प्रवेश होने नहीं दिया इससे उनके घऱ सुरक्षित रहे. इन्द्र का अभिमान टूट चुका था. उन्होंने मेघों को रोका और प्रभु की स्तुति कर क्षमा मांगी.

धूप निकली तो श्रीकृष्ण ने सबको पर्वत की छतरी से बाहर निकल जाने को कहा. सबसे निकलने पर प्रभु ने पर्वत को वापस उनके स्थान पर रख दिया. ब्रजवासियों ने मंगलगान गाया और वृद्धों ने श्रीकृष्ण की आरती उतारी और आशीष दिया.

एक कथा में आता है जब श्रीराम समुद्र पर सेतु बांध रहे थे तब हनुमानजी गोवर्धन को लेकर सेतु बनाने के लिए उड़े. किंतु उन्हें आकाशवाणी हुई कि सेतु कार्य पूरा हो चुका है. हनुमानजी ने पर्वत को भूमि पर रख दिया.

गोवर्धन दुखी हो गए. उन्होंने कहा- मैं प्रभु के चरणों के स्पर्श सुख से वंचित रह गया. आखिर मैंने कौन सा पाप किया था? हनुमानजी ने श्रीराम को गोवर्धन का दुख कह सुनाया.

प्रभु ने हनुमानजी से कहा-गोवर्धन ने कोई पाप नहीं किया. मैं उसकी भक्तिभावना से प्रसन्न हूं इसलिए जब मैं श्रीकृष्ण अवतार लूंगा तो स्वयं गोवर्धन की पूजा करूंगा. प्रभु ने गोवर्धन को पूजनीय कर दिया.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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