गणेश-पूजन विधिः

आज तिल चौठ को साफ-सुथरे लाल वस्त्र धारणकर, अपना मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखें. तत्पश्चात स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करें.
लाल रंग के फूल, अक्षत, तिल के लड्डु आदि से भगवान गणपति की आराधना करें.

लाल रंग के फल, लाल फूल, रौली, मौली, अक्षत, पंचामृत आदि से श्रीगणेश को स्नान कराएं. धूप-दीप आदि से श्रीगणेश की आराधना करें.

गणेशजी को तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्‍डू तथा मोदक का भोग लगाएं.  संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढ़े अथवा सुनें और सुनाएं. तत्पश्चात गणेशजी की आरती करें.

एक माला (108 बार) “ऊं गं गणपत्ये नमः” मंत्र का जप करने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें. गणेशजी को तिल के लड्डू के साथ दूर्वा अवश्य चढ़ावें.
गणेशजी को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती, इसका ध्यान रखें.

इसके बाद गणेश चतुर्थी की यह संक्षिप्त व्रत कथा सुनें-

गणेश चतुर्थी व्रत की कथा आरंभ करते हुए गणेशजी माता पार्वती से कहते हैं- सर्वसिद्धिदायिनी में विधानपूर्वक गणेश पूजन करने से अनेक शुभफल प्राप्त होते हैं. गुरु परंपरा का पालन करते हुए हर महीने अलग-अलग नामों से मेरी आराधना करनी चाहिए.

वे नाम क्रमशः हैं- वक्रतुंड, एकदंत, कृष्णापिन्दाक्षम, गजवक्त्रं, लम्बोदरं, विकट, विघ्नाराजेंद्रम, धूम्रवर्ण, भाल्चंद्रम, विनायक, गणपति और गजानन.

गणेशजी माता पार्वती को संकष्टि चतुर्थी की कथा सुनाते हुए कहते हैं- सतयुग में नल नामक प्रतापी राजा थे और उनकी परम रूपवती पत्नी दमयंती थीं. भाग्यवश शाप के कारण नल का दमयंती से वियोग हो गया. उनकी पत्नी ने इस व्रत के प्रभाव से अपने पति को पुनः प्राप्त किया.

जगदंबा ने पार्वती से पुनः प्रश्न किया कि हे पुत्र! दमयंती ने किस विधि से उत्तम व्रत किया और सातवें महीने में अपने पति को प्राप्त किया. अपनी माता के प्रश्न को सुनकर गणेशजी ने कहा- हे माता राजा नल दैवयोग से घोर विपत्ति में पड़ गए. हाथी घोड़े, धन-संपत्ति आदि सभी चल-अचल वस्तुओं का नाश हो गया.

मंत्री लोग छोड़कर चले गए. द्युत क्रीडा में हारे हुए व्यक्ति के समान राजा भी अपना सब कुछ गंवा चुके थे. अपने राज्य को नष्ट हुआ जानकर वह रानी दमयंती के साथ वन को चले गए. जंगल में नल अनेक प्रकार की यातनाएं भोगते रहे और अंत में अपनी पत्नी के साथ भी उनका वियोग हो गया.

किसी नगर में जाकर नल किसी तरह अपना जीवन कष्टों में भरकर बिताने लगे. उनकी पत्नी अन्य स्थान पर भीख मांगते हुए घोर कष्ट का जीवन बिता रही थीं परस्पर वियोग में रहकर वे दोनों अपने कर्मो का फल भोग रहे थे.

संयोगवश एक दिन दमयंती का शरभंग ऋषि से साक्षात्कार हुआ. दमयंती ने ऋषि से पूछा- हे ऋषिवर कृपा कर मुझे यह बताइए कि अपने पति तथा पुत्र से मेरा किस प्रकार से पुनः मिलन हो सकता है.

राज्य तथा अपने धन संपत्ति की किस प्रकार से पुनः प्राप्ति हो सकती है. इसके अतिरिक्त मैं यह भी जानने को उत्सुक हूं कि आखिर किस पाप के कारण भाग्य ने मुझे ऐसे दिन दिखाए हैं.

गणेशजी ने माता पार्वती से कहा- हे माता! दमयंती के वचनों को सुनकर शरभंग ऋषि ने कहा, हे दमयंती! सुनो मैं तुम्हारे हित की दृष्टि से कहता हूं. भाद्रपद मास और माघ मास की चतुर्थी जो संकष्ट चतुर्थी के नाम से विख्यात है.

यह व्रत महासंकट का नाश करने वाला और सभी मनोकानाओं को पूरा करने वाला है. इस दिन श्रद्धा से एकदंत गजानन का पूजन करने से सात माह के अंदर ही इच्छित फल की प्राप्ति हो जाती है.

गणेशजी ने पार्वतीजी से कहा- हे माता! दमयंती ने श्रद्धापूर्वक इस व्रत को भाद्रपद मास से आरंभ किया और सात महीने में ही उन्हें अपने पति तथा राज्य की फिर से प्राप्ति हुई और वे सुखमय जीवन बिताने लगे.

(यह कथा काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पंचांग से ली गई है. इसके अतिरिक्त भी कई गणेश कथाएं हैं जिनका श्रवण चतुर्थी को करने से गणेशजी प्रसन्न होते हैं.)

।।श्री गणेशाय नमः।।

संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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