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असुरों के चंद्रमा के साथ हो जाने से देवताओं ने युद्ध में अपने गुरू बृहस्पति का साथ दिया. चंद्रमा का पलड़ा भारी हो रहा था. बृहस्पति के पिता ने सहायता की. बृहस्पति के पिता अंगीरस शिवजी के विद्यागुरु थे. वह अपने गुरुपुत्र के पक्ष में युद्ध के लिए गणों के साथ आ गए.
बड़ी विचित्र स्थिति बनी. दक्ष एक दामाद चंद्रमा की सहायता कर रहे थे तो दूसरे दामाद शिवजी की सेना विपक्ष में बृहस्पति की सहायता के लिए खड़ी थी. गुरु शिष्य के बीच एक स्त्री को लेकर शुरू हुए झगड़े से देवासुर संग्राम की स्थिति आ गई.
ब्रह्मा को भय हुआ कि इस युद्ध के कारण कहीं सृष्टि का ही अंत न हो जाए. वह बीच-बचाव कर युद्ध रुकवाने की कोशिश करने लगे. ब्रह्माजी तारा के पास गए और समझाया कि उसके प्रेम संबंध के कारण संसार खतरे में है.
ब्रह्माजी ने तारा को दोनों पक्षों में खड़ी सेनाएं और उनके युद्ध से संभावित विनाश की झलक दिखाई तो तारा भी भयभीत हो गईं. वह बृहस्पति के पास चले जाने को मान गईं.
तारा चंद्रमा को छोड़ वापस बृहस्पति के पास आई तो संग्राम टला. समस्या यहीं खत्म नहीं होनी थी. लौटकर आने के कुछ दिनों बाद जब माहौल शांत हुआ तो तारा ने घोषणा कर दी कि वह पूर्ण गर्भवती हैं.
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