आप सबसे अनुरोध है कि प्रभु शरणम् एप्पस को अपडेट कर लें. कई मंत्र, व्रत कथाएं आदि आपके अनुरोध पर जोड़कर इसे ज्यादा उपयोगी बना दिया गया है. पढ़ें कथा

नरोत्तम चमत्कारी तपस्वी थे. वह अपनी लंगोट, कौपीन और अंगरखा या जो भी कपड़ा धुलकर हवा में उछाल देते तो कपड़े सूखने के लिए हवा में ही टिके रहते जैसे रस्सी पर लटक रहे हों.

नरोत्तम को किशोरावस्था में तप की धुन सवार हुई और कम उम्र में ही तपस्वी बन गया. उसके माता-पिता बूढे थे. पर माता-पिता को घर में अकेला छोड़ कर तीर्थयात्रा पर निकल गया.

लगातार तपस्या और तीर्थयात्रा का प्रभाव ऐसा था कि उसके गीले कपड़े आकाश में ही लटके सूख जाते थे. सब अचरज से देखते. अपने इस चमत्कार वाली शक्ति को देखकर नरोत्तम के मन में बहुत घमंड आ गया.

एक दिन उसपर अपने अभिमान का नशा चढा तो आसमान की तरफ मुंह उठा कर बोल पड़ा- है ऐसा कोई दूसरा तपस्वी इस धरती पर जिसके गीले कपड़े आकाश में ही सूख जाते हों?

एक बगुला उसके ठीक ऊपर से उड़ा जा रहा था. वाक्य पूरा होने से पहले ही उस बगुले ने जो बीट की वह उसके खुले मुँह में आ गिरी. क्रोधित तपस्वी ने बगुले को तत्काल शाप दे दिया.

फिर क्या था. बगुला तुरंत ही जल कर भस्म हो गया. लेकिन बगुले के भस्म होते ही ब्राह्मण की तपस्या और तीर्थयात्रा का जो प्रभाव था वह भी समाप्त होता गया.

उसके गीले कपड़े आकाश में सूखने बंद हो गए. वह फिर से सामान्य साधु और तीर्थयात्री भऱ हो गया. अब तो नरोत्तम बड़ा दुःखी हुआ. उसने बड़े मनोयोग से पर घोर निराशा में भगवान को याद किया.

तभी आकाशवाणी हुई- हे तपस्वी ब्राह्मण! तुरन्त मूक चाण्डाल के घर चले जाओ, वहां तुम्हें धर्म का ज्ञान होगा. तुम्हारा कल्याण भी होगा. नरोत्तम ने लोगों से मूक चांडाल का घर पूछा तो अधिकतर को पता था.

नरोत्त्म जितनी जल्दी हो सका मूक चाण्डाल के घर जा पहुँचा. चाण्डाल का घर बिना खम्भों के ही आकाश में टिका था और अचरज की बात यह कि उसके घर में एक ब्राह्मण भी बैठा था.

इस खुले हुये घर के बाहर से ही नरोत्तम ब्राह्मण ने चांडाल को पुकारते हुये कहा- मूक, मैं नरोत्तम तपस्वी. तुम्हारे यहां आया हूं. बाहर निकलो और मुझे धर्म का ज्ञान दो.

चाण्डाल ने भीतर से ही बहुत ही विनम्रता के साथ उत्तर दिया- अभी मैं अपने माता-पिता की सेवा कर रहा हूँ. थोड़ा समय लगेगा. आप तब तक दरवाजे पर ही बैठ इंतज़ार कर लें मैं आपका आतिथ्य करना चाहता हूं.

प्रतीक्षा की बात सुन कर नरोत्तम ब्राह्मण को क्रोध आ गया. वह गुस्से से बोला- तुमने मुझे ऐरा-गैरा समझ रखा है. मुझ जैसे तपस्वी ब्राह्मण के काम से ज्यादा ज़रूरी और कौन सा काम तुम्हारे पास आ गया.

क्रोधित ब्राह्मण को देखकर चाण्डाल ने कहा- महाराज आपका क्रोध बस बगुले को भस्म कर सकता है. मैं बगुला नहीं हूं. आपके शाप से नहीं जलूँगा. प्रतीक्षा तो आपको करनी ही पड़ेगी.

यदि इतनी जल्दी ही है तो पतिव्रता के घर चले जाइए. उसके दर्शन से तुम्हारा काम बन जाएगा. नरोत्तम पतिव्रता के घर की राह ली. आगे बढ़ा तो चाण्डाल के घर में बैठा हुआ ब्राह्मण भी उसके साथ हो लिया.

नरोत्तम ने ब्राह्मण से पूछा- ब्राह्मण होकर आप चाण्डाल के घर में क्यों रहते हैं? ब्राह्मण ने उत्तर दिया- जब तुम पतिव्रता का दर्शन करोगे तो तुम्हारा अन्तःकरण शुद्ध होते ही तुम सब कुछ अपने आप समझ जाओगे.

नरोत्तम ने राह में समय काटने के गरज से पूछा कि ब्राह्मण, पतिव्रता स्त्रियों के बारे में आप क्या जानते हैं? ब्राह्मण ने पतिव्रता स्त्रियों के लक्षण और उनकी महत्ता बड़े विस्तार से बताई.

फिर कहा– जिस पतिव्रता के घर तुम जा रहे हो उसका नाम शुभा है, उसके पास बहुत सारी शक्तियां हैं. यह कहकर वह ब्राह्मण अदृश्य हो गया. नरोत्तम कुछ प्रहर चलने के बाद पतिव्रता शुभा के घर पहुंच ही गया.

पतिव्रता के घर में प्रवेश करते ही नरोत्तम को बड़ा अचरज हुआ. उसने देखा कि वह ब्राह्मण जो चांडाल के वहां था और उसके साथ चला था वह ब्राह्मण यहां भी बैठा था.

नरोत्तम ने पतिव्रता से कहा- हे देवी! मुझे शीघ्र ही धर्म का ज्ञान दो. पतिव्रता ने कहा- जैसे एक पुत्र के लिए माता-पिता की सेवा से बढ़कर दूसरा धर्म नहीं है,उसी तरह एक पत्नी के लिये पति सेवा से बढ़ कर दूसरा धर्म नहीं है.

आप मेरे अतिथि हैं. मैं अभी पति की सेवा कर रही हूं. सेवा पूरी होते ही मैं आपकी सेवा करुंगी, पूरा आतिथ्य धर्म निभाउंगी और धर्म का ज्ञान भी दूँगी. निश्चिंत रहें और शांत बैठकर थोड़ा इंतज़ार करें.

फिर इंतज़ार? नरोत्तम झुंझला गया और बोला- मुझे भूख नहीं है न प्यास, न यहां मुझे आराम करना है. आपका आतिथ्य मुझे नहीं चाहिए. आप जल्दी से धर्म का ज्ञान दे दें. बहाना बनाकर विलंब करने से मैं आपको श्राप भी दे सकता हूं.

पतिव्रता शुभा बोली- ब्राह्मण श्रेष्ठ! मैं स्त्री हूं, बगुला नहीं. यदि आपको जल्दी है तो तुलाधार वैश्य के घर चले जाइए. वह आपका काम भली प्रकार कर देंगे. नरोत्तम तुलाधार वैश्य के घर की तरफ बढ़ा तो वही ब्राह्मण फिर साथ हो लिया.

कुछ दूर चलने के दौरान उसने बताया कि तुलाधार बड़ा ही सत्यवादी है, ईमानदारी की राह चलता है. सच बोलता, सही तोलता है. वैश्य के घर का पता बताकर वह ब्राह्मण अदृश्य हो गया.

नरोत्तम तुलाधार की दुकान जिसमें उसका घर भी था वहां पहुंचा. तुलाधार अपने व्यापार में बुरी तरह व्यस्त था. उसने नरोत्तम को देखा. अभिवादन के बाद संकेत से ही बैठने को आसन दिया और काम में व्यस्त हो गया.

ईश्वर प्राप्ति का मार्ग खोजने निकले नरोत्तम को आखिर दर्शन का मार्ग मिला या नहीं? यदि मिला तो किसने दिखाई राह, क्या तुलाधार ने भी आगे कहीं भेज दिया? पोस्ट लंबी हो रही थी. इसका शेष भाग कल दोपहर एक बजे की पोस्ट में..

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

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