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इसके बाद श्रीविष्णु और महादेवके मंदिर में प्रसन्नता और विधिपूर्वक पुष्प, गंध, तांबूल ले जाएं. वहां भगवान की पाद्य आदि से स्तुति करके नमस्कार करें व भजन गाएं. देवालय में भजन करने वाले विष्णुस्वरूप होते हैं.

जैसे सतयुग में तप, ज्ञान, यज्ञ, दान आदि से भगवान प्रसन्न होते हैं वैसे ही कलियुग में भक्तिपूर्वक भजन मोक्ष प्रदान करने वाले हैं.

नारदजी बोले- सिरस, धतूरा, कटेर, मल्लिका, सेमर, आक, कनेर के फूल तथा अक्षतोंसे भगवान विष्णु की पूजा नहीं होती. जयकुंद, सिरस, चमेली, मालती, केतकी आदि के फूलों से सूर्य की पूजा करने से लक्ष्मी की हानि होती है.
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