RISHI-MANDLI

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किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें बड़ी दोस्ती थी। वे स्वयं को श्रेष्ठ समझते थे। किसी से घुले-मिले नहीं। बचपन में उन्होंने कहीं दूर जाकर पढ़ाई का मन बनाया।

वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर चले गये। वहाँ वे किसी पाठशाला में पढ़ने लगे। बारह वर्ष में उन्होंने सभी पुस्तकें रट लीं लेकिन व्यावहारिक ज्ञान में कोई रुचि ही न थी।

किताबें रटने के बाद उनका पढ़ाई से मन भर गया। गुरु की आज्ञा लेकर उन्होंने अपनी पोथी-पतरी संभाली और अपने नगर की ओर लौट चले।

कुछ दूर ही गये थे कि रास्ते में एक तिराहा पड़ा। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि आगे के दो रास्तों में से कौन-सा उनके अपने नगर को जाता है।

अक्ल काम न दे रही थी। उनमें से एक पोथी उलटकर देखना शुरू किया कि इसके बारे में क्या लिखा है। संयोग से पास के नगर का एक महाजन बनिया मर गया था।

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