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अहंकारी रावण बोला- मैंने तप से महादेव को प्रसन्न कर दस शीश मांगे परंतु तुम्हें न जाने क्या सूझा जो वानर का मुख मांग लिया? प्रातःकाल वानर के मुख का दर्शन तो अपशकुन होता है. तुम्हारी मूर्खता पर हंसी आती है.

रावण द्वारा बार-बार किए गए अपमान से नंदी क्रोधित हो गए. उन्होंने रावण को शाप देते हुए कहा- जिस वानर का तुम उपहास कर रहे हो, वे वानर ही तुम्हारी मृत्यु के कारण बनेंगे.

अपने दस सिरों पर घमंड करने वाले दसानन जब कोई तपस्वी मानव, वानरों को आगे करके तुम्हारे साथ युद्ध करेगा, तब तुम्हारी मृत्यु निश्चित होगी.

रावण से पीड़ित देवताओं ने श्रीहरि विष्णु को बताया कि शिव के परम भक्त रावण को शिवजी के प्रधान सेवक ने शाप दे दिया है. अब इसे पूर्ण करने का मार्ग बताइए.

भगवान श्रीविष्णु ने कहा- रावण के पापों का घड़ा भर चुका है. उसके वध करने के लिए मैं स्वयं मानव रूप में अवतार लेने वाला हूं.

आप सभी देवतागण वानर के रूप में पृथ्वी पर अवतार लीजिए. इस तरह विभिन्न देवता श्रीहरि के आदेश पर उनका कार्य सिद्ध करने के लिए वानर रूप में अवतार लेने लगे.
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