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यशोदाजी बहुत देर तक सोचती रहीं फिर जवाब दिया, नहीं. हमारे घर में इतने मोतियों के मूल्य के बराबर कोई मोती, माला तो क्या कोई और समान भी नहीं है.

नंदराज ने सोचा आज तो हमारी सारी लाज गयी. लोगों में खूब हंसी उड़ेगी.

इसके बराबर आखिर क्या हो सकता है जो इन्हें दिया जाये. कुछ भी नहीं. अब तो जो जैसा है उसे स्वीकारना चाहिये और जब धन आयेगा तो उससे मोती लेकर बाद में कन्या पक्ष को भिजवा देने के अलावा कोई चारा ही नहीं है.

इसी बीच अचानक भगवान श्रीकृष्ण वहां आये, वे सारी बात सुन समझ गये.

उन्होंने कन्या पक्ष से उपहार में आये उन मोती की मालाओं में से 100 मालायें निकाल लीं और उनमें तोड़ कर सारे मोती अलग अलग कर दिये. भगवान ने उन मोतियों को खेतों में ले जा कर छींट दिया.

नंदराज ने मोती की मालाओं को फिर से गिना और उसमें से सौ माला कम पाया. नंदराज जी बहुत चिंतित हुए कि एक तो वैसे भी इतने मोती कहां से लाता फिर उसमें से भी सौ कम हो गये.

पहले तो महज हंसी उड़ती अब तो भाई बंधुओं में ही मुझ पर कलंक ही लग जायेगा.

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