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नंदराज जी ने बहुत सोच विचार कर बलराम और श्रीकृष्ण को बुला कर पूछा कि कहीं तुम दोनों में से किसी ने खेलने के लिये मालाओं को तो नहीं निकाला है, मैं चिंतित हूं.
इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने जवाब दिया- बाबा, हम सारे गोप किसान हैं, एक बीज बोकर ढेर सारा अनाज उपजाते हैं. मैंने उन मोतियों को बीज की तरह खेतों में बो दिये हैं.
नंदराज जी ने कृष्ण को बुरी तरह डांट पिलायी और बोले कि जहां कहीं भी बोये या छींटे गये हों वो मोती, उन्हें तुरंत बीनकर लाओ. श्रीकृष्ण ने कहा जैसी आपकी आज्ञा और बाहर चले तो नंदराज भी भारी चिंता में उनके साथ हो लिये.
नंदराज, बलराम और भगवान श्री कृष्ण मोती बीनने उस जगह पहुंचे जहां वे बोये गये थे.
यहां अजब छटा थी. खेतों में सैकड़ों अनजाने से सुंदर, विशाल और हरे भरे पेड़ दिखाई दिये. इन पेड़ों पर खूब मोटे मोटे चमकदार मोतियों के हजारों गुच्छे लटके हुये थे.
करोड़ों मोती थे और हर एक आकाश में टिमटिमाते तारों की तरह रोशनी बिखेर रहा था. इन दिव्य मोतियों के गुच्छे तोड़ उन्हें अलग कर गाड़ियों पर लदवा कर नंदराज ने घर को रवाना किया.
नंदराज ने इन सब मोतियों को कन्या पक्ष से वर देखने आने वाले लोगों को श्री राधाजी की गोद भराई के लिये दे दिया. यह सब मोती लेकर वे वृषभानुवर के पास पहुंचे और नंदराज के वैभव की तरह तरह से तारीफ की.
नारद जी ने कहा, बहुलाश्व जहां भगवान श्रीकृष्ण ने मोती बोये थे वह बाद में मुक्ता सरोवर नाम का तीर्थ बन गया जहां एक मोती दान करना भी करोड़ मोतियों के दान के बराबर होता है.
स्रोत: गर्ग संहिता
संकलनः सीमा श्रीवास्तव
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