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श्रीरामजी अपनी माताओं में से सबसे ज्यादा स्नेह माता कैकयी से रखते थे. यह तो सभी जानते हैं. रामायण और रामचरितमानस में इससे जुड़े कई प्रसंग आए हैं किंतु इस स्नेह के पीछे की एक प्रचलित लोककथा है, आप उसका आनंद लें.

हमारी परंपरा में लोककथाओं को बहुत सम्मान दिया गया है. इसलिए हम समय-समय पर लोककथाओं को भी स्थान देते रहते हैं. संभव है कि आपको यह कथा अविश्वसनीय लगे, ऐसे में एक कथा की तरह बस आनंद लें.

एक बार युद्ध में राजा दशरथ का मुकाबला बाली से हो गया. राजा दशरथ की तीनों रानियों में से कैकयी अस्त्र-शस्त्र और रथचालन में पारंगत थीं. इसलिए कई बार युद्ध में वह दशरथजी के साथ होती थीं.

जब बाली और राजा दशरथ की भिडंत हुई उस समय भी संयोगवश कैकई साथ ही थीं. बाली को तो वरदान था कि जिसपर उसकी दृष्टि पड़ जाए उसका आधा बल उसे प्राप्त हो जाता था. स्वाभाविक है कि दशरथ परास्त हो गए.

बाली ने दशरथ के सामने शर्त रखी कि पराजय के मोलस्वरूप या तो अपनी रानी कैकेयी छोङ जाओ या फिर रघुकुल की शान अपना मुकुट छोङ जाओ. दशरथजी ने मुकुट बाली के पास रख छोङा और कैकेयी को लेकर चले गए.

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