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तभी देव गंधर्वों सहित स्वयं धर्मराज वहां आ पहुंचे. वीरवाहन ने धर्मराज की स्तुति की. धर्मराज प्रसन्न हुए और बोले- यमदूतों इन्हें सुख साधन की प्रचुरता वाले देवलोक में ले जाओ.
वीरवाहन ने धर्मराज से पूछा- हे देव, मैंने जीवन में अनेक व्रतोपवास, दान, यज्ञ, हवन, तीर्थाटन और सत्संग जैसे तमाम पुण्य किए. मुझे यह नहीं पता कि मुझे किस पुण्य के प्रताप से स्वर्ग का अधिकारी समझा जा रहा है. कृपया बताएं.
धर्मराज बोले- तुमने बहुत से पुण्य कार्य किए फिर सत्संग करने से उनका प्रभाव दोगुना हो गया. फिर तुमने वशिष्ठ का कहा मानकर वृषोत्सर्ग भी कराया इसलिए अब आप स्वर्ग के अधिकारी बने.
भगवान श्रीकृष्ण बोले- हे गरूड़, मनुष्यों को सद्गति दिलाने वाले वृषोत्सर्ग की महत्ता मैंने आपको सुनाई. इसकी एक विशेषता यह भी है कि इसे सुनने वाला भी सद्गति का अधिकारी हो जाता है.
कहते हैं श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकली यह कथा जीवन में कम से कम एक बार अवश्य सुननी चाहिए और किसी न किसी को सुनानी भी चाहिए. जितना ज्यादा सुना सकें उतना ही लाभ. वृषोत्सर्ग का सबसे उचित दिन कार्तिक पूर्णिमा है.
संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश
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