आजकल आत्महत्या की प्रवृति बहुत बढ़ रही है. लोगों में जीवन के प्रति उदासी बढ़ रही है.  हमें पता नहीं होता, हमारे आसपास मौजूद ही कोई व्यक्ति अंदर से कितना खोखला, कितना अकेला, कितना टूटा हुआ महसूस कर रहा हो. जीवन को खत्म करने के ख्याल आ रहे हों. ऐसे लोगों में जीवन भरने में यह कथा मददगार बनेगी. बस आपको पांच मिनट का धैर्य रखते हुए इसे आराम-आराम से अंत तक पढ़ना है.

मैं कथाओं में अक्सर कहता हूं कि भगवान संघर्ष और दुख की घड़ी हमें तोड़ने के लिए बल्कि चट्टान जैसा सख्त बनने के लिए देते हैं. जो उसका इस्तेमाल कर लेते हैं वे शीर्ष पर होते हैं और जो टूट जाते हैं वे तो टूट ही जाते हैं. बहुत से लोगों ने कहा कि यह सब कहने-सुनने में तो अच्छा लगता है. पर व्यवहारिक नहीं है. यदि सचमुच ऐसा ही होता तो क्यों आज भी इसे ही जीवन की सबसे अच्छी थेरेपी माना जाता.

जीवन की एक व्यवहारिक बात आज मैं आपको एक व्यवहारिक तरीके से  समझाउंगा. इसका प्रयोग नर्क जैसे दुर्गम स्थानो में तैनात फौजियों तक में आत्मबल देने के लिए किया जाता है. सोना तपकर कुंदन बनता है. संघर्ष में इंसान सिर्फ टूट ही जाता है ऐसा नहीं है.

 

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हो सकता है यह कथा आपने सुनी होगी. पर मकसद तो वह बात समझाना था जो कथा के बाद आती है.  यह जीवन कथा धैर्य से पूरा पढ़िएगा. उसके बाद शांत मन से उस बिंदु पर मंथन करिएगा जो कथा के अंत में आएगी. यह दुनियाभर में आजमाई हुई कारगर विधि है.

जापान समुद्र के बीच में स्थित है. वहां भूमि की कमी है इसलिए सब्जी आदि के स्थान पर जापानियों का मुख्य आहार हमेशा से मछलियां ही रही हैं. मछलियां जितनी ताज़ी होतीं हैँ जापानी उसे खाना उतना ही पसंद करते हैं लेकिन तटों के पास इतनी मछलियां होतीं नहीं जो जापानियों की जरूरत पूरी कर सके.

नतीजतन लोगों की रूचि का ध्यान रखते हुए मछुआरों को दूर समुंद्र में जाकर मछलियाँ पकड़नी पड़ती हैं. दूर समुद्र में जब इस तरह से मछलियां पकड़ने की शुरुआत हुई तो मछुआरों के सामने एक गंभीर समस्या आ खड़ी हुई. वे समुद्र में जितनी दूर मछली पक़डने जाते उन्हें वापस तट पर लौटने मे उतना ही अधिक समय लगता.

मछलियाँ बाजार तक पहुंचते-पहुंचते बासी हो जातीँ और फिर कोई उन्हें खरीदना नहीं चाहता. यानी समस्या जस की तस रही. इस समस्या से निपटने के लिए मछुआरों ने अपनी नावों पर फ्रीज़र लगवा लिए. वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें फ्रीजर में डाल देते.

इस तरह से वे और भी देर तक मछलियाँ पकड़ सकते थे और उसे बाजार तक पहुंचा सकते थे. पर इसमें भी एक समस्या आ गयी.

जापानी बर्फ में रखी मछलियों और ताजी मछलियों में आसानी से अंतर कर लेते. वे बर्फ की मछलियों को खरीदने से कतराते. उन्हें तो किसी भी कीमत पर ताज़ी मछलियां ही चाहिए होतीं.

एक बार फिर मछुआरों को इस समस्या से निपटना था. उन्होंने इस बार अपने बड़े-बड़े जहाजों पर बड़े-बड़े टैंक बनवा लिए. अब वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें पानी से भरे टैंकों मे डाल देते.

टैंक में डालने के बाद कुछ देर तो मछलियाँ इधर उधर भागती पर जगह कम होने के कारण वे जल्द ही एक जगह स्थिर हो जातीं. जब ये मछलियां बाजार पहुंचती तो भले वे ही सांस ले रही होतीं लकिन उनमेँ वह बात नहीं होती जो आज़ाद घूम रही ताज़ी मछलियों में हो.

जापानी इन मछलियों में भी अंतर कर लेते. तो इतना कुछ करने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई थी. अब मछुआरे क्या करते? ताज़ी मछलियां लोगोँ तक कैसे पहुंचाई जाएं?

उन्होंने कुछ नया नहीं किया. वे अब भी मछलियां टैंकों में ही रखते, पर इस बार हर टैंक में एक छोटी सी शार्क मछली भी ङाल देते. शार्क कुछ मछलियों को जरूर खा जाती थी पर ज्यादातर मछलियाँ बिलकुल ताज़ी पहुंचती.

ऐसा इसलिए हो रहा था क्योंकि शार्क बाकी मछलियों की लिए एक चुनौती की तरह थी. उसकी मौज़ूदगी बाक़ी मछलियों को हमेशा चौकन्ना रखती. अपनी जान बचाने के लिए वे हमेशा सतर्क रहती थीं. इसीलिए कई दिन तक टैंक में होने पर भी उनमें स्फूर्ति ओर ताजापन बना रहता.

आज बहुत से लोगों की ज़िन्दगी टैंक में पड़ी उन मछलियों की तरह हो गई है जिन्हें जगाने की लिए कोई शार्क जैसी चुनौती मौज़ूद नहीं है.

एक छोटी सी मछली जैसे जीव की कद्र चुनौतियों के कारण बढ़ जा रही है तो मनुष्य तो ब्रह्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति है. हममें तो चुनौतियों को अवसर ती तरह लेने की क्षमता होती है.

जीवन की चुनौतियां हमेशा तोड़ती नहीं है. आपके साथ भी अगर लगातार ऐसा हो रहा है तो अपने जीवन में चुनौतियों से भागने की बजाय उनसे भिड़ना सीखिए. अब इसे अपने जीवन के उदाहरण से समझिए

याद करिए पिछली बार जब आप पर कोई विपत्ति आई थी. आपको लगा होगा इससे तो मैं पार ही नहीं पा सकूंगा. अब तो जीवन खत्म ही हो गया. सप्ताह भर चिंतित रहने के बाद आपको उसका सामना करने की कहीं से प्रेरणा मिली होगी या मजबूरी में ही राह बनाई होगी.

शुरू-शुरू में आप बहुत खीजते होंगे. झुंझलाहट होती होगी लेकिन फिर एक सप्ताह बाद आप उस फेज को पार कर चुके होंगे. अब जो बात आपको सप्ताह भर पहले बेचैन कर देती रही होगी धीरे-धीरे आप उसे सहजता से लेने लगें होंगे.

एक समय ऐसा आ गया होगा जब कोई और ऐसे संकट में फंसा आपको दिखा होगा तो आप उसके लिए मार्गदर्शक बन गए होंगे. जो खुद एक दिन किसी परेशानी में टूट रहा था अब वह औरों को हौसला दे रहा है.

क्या यह एक बड़ी उपलब्धि नहीं है. हारा हुआ महसूस करने वाला इंसान किसी के लिए प्रेरक या मोटिवेटर बन जाए. उसकी कद्र होने लगे. दिमाग पर जोर डालिए हर आदमी के साथ कम से कम एक ऐसा अनुभव तो होता ही. जीवन के उसी अऩुभव को याद करिए, आत्मबल मिलेगा.

चंद सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है. आप जिस रूटीन के आदि हों चुकें है आपको उससे कुछ अलग़ करना होगा.

अपना दायरा बढ़ाना होगा और एक बार फिर ज़िन्दगी में रोमांच और नयापन लाना होगा नहीं तो बासी मछलियों की तरह आपका भी मोल कम हों जाएगा.

लोग आपसे मिलने-जुलने की बजाय बचते नजर आएंगे. अगर आपके जीवन में चुनौतियां हैं, बाधाएं है तो उन्हें कोसते मत रहिए. कहीं ना कहीं ये आपको ताजा और जीवंत बनाए रखते हैं. इन्हें स्वीकारिए और अपना तेज बनाए रखिए. जीवन जीने की यह कला जीवन भर काम आएगी.

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