हमारा फेसबुक पेज लाईक करें.[sc:fb]
कुछ दिन बीते तो देवदूत उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए आए. महर्षि मुद्गल ने पूछा- क्या स्वर्ग में मैं भूखों की सेवा, अतिथियों का सत्कार और ईश्वर की भक्ति कर सकूंगा.
देवदूतों ने कहा- स्वर्ग में केवल सुख भोग सकेंगे, कर्म नहीं कर पाएंगे. मुद्गल जी बोले, आप वापस जाएं, मुझे अकेले सुख भोगने में कोई आनंद नहीं, बल्कि दूसरों को सुख पहुंचाने, सेवा और सत्कार करने में आनंद मिलता है.
मुद्गल ने कहा- भगवान की भक्ति करके मुझे जो संतोष मिलता है, वह स्वर्ग के सुखों में कैसे मिलेगा. स्वर्ग में देवताओं की आपस में लाग डांट है वहां संतोष कहां? असुरों के आक्रमण और पुण्य के पतन का भय मुझे अपना काम करने न देगा.
शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.