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सभी देवताओं के संयोग से बने मनुष्य के शरीर ने उसे दबोचने के लिए वाणी का प्रयोग किया. वाणी अन्न को पकड़ने के लिए मंत्र पढ़ने लगी लेकिन अन्न उसकी पकड़ में नहीं आया.

सभी परमपिता के पास पहुंचे और सारी आपबीती सुनाई. ब्रह्मा ने कहा- भूख मिटाने के लिए अन्न मात्र मंत्र पढ़ने से नहीं मिलेगा. तुम सब कुछ और प्रयास करो.

उसके बाद घ्राण इंद्रियों यानी नाक, कर्ण इंद्री, नेत्र इंद्री, त्वचा इंद्री सबने अन्न को पकड़ने की कोशिश की लेकिन अन्न किसी के पकड़ में नहीं आया.

सब फिर गुहार लगाने ब्रह्मा के पास पहुंचे. ब्रह्मा ने कहा-अन्न का कहना है कि वह मनुष्य को सूंघने, छूने या सुनने से प्राप्त नहीं होगा. भूख मिटानी है तो कुछ और उपाय करो.

अंत में वह पुरुष मुख के रास्ते अन्न को अपने शरीर में प्रवेश कराने में सफल हुआ. अन्न ने अपना बलिदान देकर मानव शरीर में बसे सभी देवों को तृप्त किया.

जब शरीर में देवों को तृप्ति मिल गई तो प्राण का संचार हुआ. यानी शरीर में प्राण आ गए.

अब परमात्मा ने सोचा कि अगर मानव इस प्रकार से स्वयं समर्थ तो हो गया लेकिन इसे हर कदम पर मेरी जरूरत पड़ेगी. यह आखिर अकेला कैसे रहेगा.
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