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पिप्पलाद ने कहा यदि शनि वचन दें कि वह 12 वर्ष तक की आयु के बच्चों को पीड़ित नहीं करेंगे तभी इस पर विचार हो सकता है.

शनि ने हामी भर दी. महादेव ने कहा- शनि दंड का आघात अपने पैर पर झेल लें. मैं प्रहार की शक्ति को कम कर देता हूं.

उसी दंड के प्रहार से शनिदेव का एक पैर घायल हो गया और वह लंगड़ाने लगे. उनकी गति मंद हो गई.

पिप्पलाद ने कहा- भगवान शिव के कारण शनि की रक्षा हुई है इसलिए जो भी पिप्पलेश्वर महादेव की पूजा करेगा शनि उस पर कुपित नहीं होंगे.

तब से शनिवार के दिन शनि ग्रह की शांति के लिए शनिदेव के साथ-साथ पीपल वृक्ष की पूजा का भी विधान बन गया.

कई स्थानों पर पिप्पलाद की जन्मकथा कथा में थोड़ा अंतर दिखता है. उसमें पिप्पलाद को दधीचि का पुत्र बताया गया है.

दधीचि ने इंद्र के वज्र के लिए अस्थियां दान कर दीं. उस समय उनकी एक पत्नी गभस्तिनी गर्भवती थीं.

पति संग सती होने के लिए गभस्तिनी ने अपना पेट चीरकर गर्भ निकाला और एक पीपल वृक्ष के नीचे रख दिया. वृक्षों ने ही उस बालक का पोषण किया और उसका नाम पिप्पलाद पड़ा.

संकलन व संपादन: राजन प्रकाश

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2 COMMENTS

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