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इसलिए आपके मन में इसके प्रति दो तरह की भावनाओं ने जन्म लिया है. जैसी भावना अपनी होती है, वैसा ही प्रतिबिम्ब दूसरे के मन पर पडने लगता है. यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है.

हम किसी व्यक्ति का मूल्यांकन कर रहे होते हैं तो उसके मन में उपजते भावों का उस मूल्यांकन पर गहरा प्रभाव पड़ता है. इसलिए जब भी किसी से मिलें तो एक सकारात्मक सोच के साथ ही मिलें.

ताकि आपके शरीर से सकारात्मक ऊर्जा निकले और वह व्यक्ति उस सकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित होकर आसानी से आप के पक्ष में विचार करने के लिए प्रेरित हो सके क्योंकि जैसी दृष्टि होगी, वैसी सृष्टि होगी.

संकलनः नरेंद्र मीणा
संपादनः राजन प्रकाश

यह प्रेरक कथा जयपुर से नरेंद्र मीणाजी के सौजन्य से प्राप्त हुई. नरेंद्रजी स्व-व्यवसायी हैं और सोशल मीडिया पर धार्मिक-आध्यात्मिक चर्चाओं को विस्तार देने में सक्रिय रूप से योगदान करते हैं. इनकी भेजी कथाएं पहले भी प्रभु शरणम् में प्रकाशित होती रही हैं.

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