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राजा ने कहा- महर्षि मैं इस चिंता में रहता हूं कि मुझसे अनजाने में भी कोई पाप न हो जाए. मैं यथाशक्ति धर्मकार्य करता रहता हूं पर मुझे यमराज के दूतों से बड़ा भय रहता है कि अनजाने में हुए किसी पाप के चलते नरक न भोगना पड़े. भयमुक्ति की राह बताएं.

वशिष्ठजी बोले- सद्गति के लिए गया तीर्थ में पितरों का श्राद्ध करने, दूसरे उपाय करने के बावजूद जो वृषोत्सर्ग यानी वृष दान नहीं करते उनके कार्य निष्फल रहते हैं. वृषोत्सर्ग से ब्रह्महत्या तक के पाप धुल जाते हैं. इसलिए विधिवत वृषोत्सर्ग करना चाहिए.

ब्राह्मण को श्वेत वृषभ अथवा सांड का, क्षत्रिय को भूरा लाल और वैश्य को पीला एवं शूद्र के लिए काला वृषोत्सर्ग के लिए उत्तम है. किस प्रकार के वर्ण और किस तरह के वृष का उत्सर्ग उत्तम रहेगा यह जानकर ही वृषोत्सर्ग करना चाहिए. इनमें नीला वृष सर्वोत्तम है.

वृषोत्सर्ग कराने वाले ब्राह्मण की उपस्थिति में इनके माथे पर शुभ तिलक लगाकर, बछियाओं से विवाह कराने के बाद जांघों पर त्रिशूल का निशान बनाकर और उसके बाद धूप दीप और नैवेद्य के साथ बताई गयी तिथि पर पूजा करके बंधनमुक्त कर देना चाहिए.
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