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उन्होंने धर्मवत्स को उसी नगर के एक उपवन में जा उतारा. नगर बड़ा सुंदर था. संगीत की ध्वनि गुंज रही थी. कुछ सामान्य से दिखने वाले लोग दिखे, कुछ मैले कुचैले वस्त्र पहने लोग. इसके विपरीत कुछ लोगों के वस्त्र और आभूषण तो ऐसे थे जैसे वे देवता हों और स्वर्ग से सीधा यहीं आये हों.

धर्मवत्स को एक बार लगा कि वह या तो सपना देख रहा है या मर चुका है. चारों युवक धर्मवत्स को यहां के राजा के पास ले गए जो सोने के सिंहासन पर विराजमान था.

सभा सजी थी और राजा आमोद में डूबा था. तभी धर्मवत्स को देखकर वह राजा अपने दिव्य सिंहासन से उठ खड़ा हुआ. राजा व्यग्रता से धर्मवत्स की ओर बढा. राजा ने धर्मवत्स का स्वागत पैर छूकर किया और आसन दिया.

राजा ने कहा- हे ब्राह्मणदेव आप जैसे विष्णुभक्त के दर्शन से मेरा कुल पवित्र हो गया. राजा ने उन चारों युवकों को आदेश देते हुए कहा कि ब्राह्मण श्रेष्ठ को इनकी दक्षिणा समेत जहां से लाये थे वही जस का तस छोड़ आओ.
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