दिवाली पूजन कैसे करें, दिवाली पूजन का शुभ मुहूर्त क्या है. स्वयं से भी कर सकते हैं दिवाली पूजन, किन मंत्रों से करें दिवाली पूजन.  दिवाली को लक्ष्मी पूजा में क्या-क्या सावधानी रखनी चाहिए. इस पोस्ट को पढ़कर आप स्वयं विधिवत कर सकते हैं दीवाली पूजन.

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सभी चाहते हैं कि माता लक्ष्मी की कृपा उनपर और उनके परिवार पर हो. धन-धान्य से परिपूर्ण रहें और दरिद्रता तो आसपास भी न फटके. माता लक्ष्मी को चंचला कहा जाता है. इसलिए उन्हें प्रसन्न रखने के लिए विशेष उपाय करने होते हैं. जैसे आप किसी घर में जाते हैं और वहां आपकी अच्छी आवभगत होती है तो आपका मन प्रसन्न होता है उसी तरह लक्ष्मीपूजा पर आपने यदि महालक्ष्मी की विधिवत आवगभगत की तो वह आपके घर में वास करने करने लगती हैं.

आज हम आपको बताते हैं महालक्ष्मी की पूजा और सच्ची आवभगत का विधिवत तरीका जिससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं.

माता लक्ष्मी की विशेष पूजा का एक अतिउत्तम अवसर होता है. जिन माता की कृपा से ही हमारे सभी कार्य पूरे होते हैं, घर में धन-धान्य आता है तो क्या उनकी पूजा विधिवत नहीं होनी चाहिए. आज हम आपको माता की विधिवत पूजा का तरीका बताते हैं जिसे आप अपने घर में कर सकते हैं. तो इस दीवाली को पंद्रह मिनट की विधिवत पूजा करें माता को प्रसन्न करने के लिए.

सोलह प्रकार से माता की सेवा करने से वह अत्यंत प्रसन्न होती हैं- इसे षोडशोपचार पूजा कहते हैं. आइए पहले यह जानते हैं कि षोडषोपचार से पूजा करने के लिए किन-किन सामग्री की आवश्यकता होगी.

-दिवाली पूजा के लिए महालक्ष्मी की नवीन प्रतिमा खरीदनी चाहिए.

-प्रतिमा की विधिवत पूजा करके अपने घर, दुकान या ऑफिस में स्थापित करना चाहिए. माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए.

-वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है.

-माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है.

-फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं.

-सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें.

-अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्ध केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है.

-प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है.

-गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए.

महालक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के लिए षोडशोपचार पूजाः

ध्यानः

भगवती लक्ष्मी का ध्यान पहले से अपने सम्मुख प्रतिष्ठित श्रीलक्ष्मी की नवीन प्रतिमा में करें. ध्यान मंत्रः

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी
गंभीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्र वस्त्रोत्तरीया।

या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितै: स्नापिता हेमकुम्भै:
सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता।।

मन्त्र का अर्थ- भगवती लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं, कमल की पंखुड़ियों के समान सुन्दर बड़े-बड़े जिनके नेत्र हैं, जिनकी विस्तृत कमर और गहरे आवर्तवाली नाभि है, जो पयोधरों के भार से झुकी हुई और सुन्दर वस्त्र के उत्तरीय से सुशोभित हैं, जो मणि-जटित दिव्य स्वर्ण-कलशों के द्वारा स्नान किए हुए हैं, वे कमल-हस्ता सदा सभी मङ्गलों के सहित मेरे घर में निवास करें।)

आवाहनः

श्रीभगवती लक्ष्मी का ध्यान करने के बाद, निम्न मन्त्र पढ़ते हुये श्रीलक्ष्मी की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा दिखाकर, उनका आवाहन करें.

आगच्छ देव देवेशि, तेजोमयि महालक्ष्मी,
क्रियामाणां मयापूजां गृहाण सुर वंदिते।
श्रीलक्ष्मी देवीं आवाह्यामि।

मन्त्र का अर्थ- हे देवताओं की ईश्वरि! तेजमयी हे महादेवि लक्ष्मी! देव-वन्दिते! आइए, मेरे द्वारा की जानेवाली पूजा को स्वीकार करें। मैं भगवती श्रीलक्ष्मी का आवाहन करता हूँ)

पुष्पाञ्जलिः

आवाहन करने के बाद निम्न मन्त्र पढ़ कर माता लक्ष्मी को आसन प्रदान करने के लिए पांच पुष्प अंजलि में लेकर अपने सामने छोड़ें-

श्रीलक्ष्मी-देव्यै आसनार्थे पंचपुष्पम् समर्पयामि।

अर्थः भगवती श्रीलक्ष्मी के आसन के लिए मैं पाँच पुष्प अर्पित करता हूँ.

स्वागतः
पुष्पांजलि-रूप आसन प्रदान करने के बाद, मन्त्र पढ़ते हुए हाथ जोड़कर श्रीलक्ष्मी का स्वागत करें.

श्रीलक्ष्मी देवि स्वागतम्।

हे महालक्ष्मी देवी आपका स्वागत है.

पाद्यः
स्वागत कर निम्न मन्त्र से पाद्य अर्थात चरण धोने हेतु जल समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी देव्यै पाद्यम् नमः

अर्थः भगवती श्रीलक्ष्मी को पैर धोने के लिए यह जल है-उन्हें नमस्कार

अर्घ्यः
पाद्य समर्पण के बाद उन्हें अर्घ्य (शिर के अभिषेक हेतु जल) समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै अर्घ्यम् स्वाहा

अर्थः भगवती श्रीलक्ष्मी के लिए अर्घ्य समर्पित है.

स्नानः

अर्घ्य के बाद निम्न मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को जल से स्नान कराएं.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै स्नानं जलं समर्पयामि

अर्थः श्रीलक्ष्मीदेवी को स्नान के लिए जल समर्पित करता हूं.

पञ्चामृत स्नानः
श्रीलक्ष्मी को निम्न मंत्र से पञ्चामृत स्नान से स्नान कराएं. मंत्र पढ़ते हुए पंचामृत छिड़का जाता है.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै पंचामृतस्नानं समर्पयामि

श्रीलक्ष्मी देवी को स्नान के लिए पंचामृत समर्पित करता हूं

गन्ध स्नानः
श्रीलक्ष्मी को गन्ध मिश्रित जल से स्नान कराएं. मंत्र पढ़ते हुए गंध यानी इत्र छिड़का जाता है.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै गंधस्नानं समर्पयामि

अर्थः स्नान के लिए महालक्ष्मी देवी को गंध समर्पित करता हूं.

पंचामृत और गंध से स्नान कराने के बाद माता लक्ष्मी को शुद्धजल से स्नान अवश्य कराना चाहिए.

शुद्ध स्नानः

निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को शुद्ध जल से स्नान कराएँ.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।

अर्थः श्रीलक्ष्मी देवी के स्नान के लिए शुद्ध जल अर्पित करते हैं.

वस्त्रः
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को मोली या कलावा के रूप में वस्त्र समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै वस्त्रम् समर्पयामि।

अर्थः श्रीलक्ष्मीदेवी को स्नान के लिए वस्त्र समर्पित करते हैं.

मधुपर्कः
श्री लक्ष्मी देवी को दूध व शहद का मिश्रण, मधुपर्क अर्पित करें. निम्न मंत्र पढ़ेंः

श्रीलक्ष्मी-देव्यै मधुपर्कम् समर्पयामि

अर्थः श्रीलक्ष्मी देवी को मधुपर्क समर्पित करते हैं.

आभूषणः

मधुपर्क के बाद निम्न मन्त्र पढ़कर आभूषण चढ़ाएं. लोग नए अाभूषण खरीदते हैं और माता को समर्पित करने के उपरांत धारण करते हैं. स्वर्ण, चांदी, मोती आदि के आभूषण हो सकते हैं. कुछ नहीं हो तो चूड़ी आदि शृंगार का सामान अर्पित कर सकते हैं.

मंत्रः श्रीलक्ष्मी-देव्यै आभूषणानि समर्पयामि

अर्थः श्रीलक्ष्मी देवी को आभूषण आदि समर्पित करते हैं.

रक्तचन्दनः
आभूषण के बाद निम्न मन्त्र पढ़कर श्रीलक्ष्मी को लाल चन्दन चढ़ायें.

मंत्रः श्रीलक्ष्मी-देव्यै रक्तचंदनम् समर्पयामि।

अर्थः श्रीलक्ष्मी देवी को लाल चंदन समर्पित करता हूं.

सिन्दूरः

निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मीजी को तिलक के लिये सिन्दूर चढ़ाएं.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै सिंदूरम् समर्पयामि

लक्ष्मी देवी को सिंदूर समर्पित करता हूं.

कुमकुमः

निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अखण्ड सौभाग्य रूपी कुङ्कुम चढ़ायें.

मंत्रः श्रीलक्ष्मी-देव्यै कुमकुमं समर्पयामि

अर्थः श्रीलक्ष्मी देवी को कुमकुम समर्पित करता हूं.

अबीर गुलाल
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अबीरगुलाल चढ़ाएं.

मंत्रः श्रीलक्ष्मी-देव्यै अबीर गुलालं समर्पयामि।

सुगन्धित द्रव्यः
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को सुगन्धित द्रव्य चढ़ायें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै सुगंधिततैलं समर्पयामि।


अक्षतः

निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को अक्षत चढ़ायें।

श्रीलक्ष्मी-देव्यै अक्षतान् समर्पयामि।

श्रीलक्ष्मी देवी को अक्षत समर्पित करते हैं.

चन्दन-समर्पण
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को चन्दन समर्पित करें।
श्रीलक्ष्मी-देव्यै चंदनं समर्पयामि

पुष्प-समर्पण
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें.

मंत्रः श्रीलक्ष्मी-देव्यै पुष्पं समर्पयामि

अंग पूजनः

निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवती लक्ष्मी के अङ्ग-देवताओं का पूजन करना चाहिए. इसके लिए बाएं हाथ में चावल, पुष्प व चन्दन रख लें. इसके बाद माता लक्ष्मी का ध्यान करके नीचे लिखे प्रत्येक मन्त्र का उच्चारण करते हुए दाहिने हाथ से थोड़ा-थोड़ा करके श्रीलक्ष्मीजी की मूर्ति के पास छोड़ें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै पंचामृतस्नानं समर्पयामि

ऊँ चपलायै नमः पादौ पूजयामि

ऊं चंचलायै नमः जानू पूज्यामि

ऊं कमलायै नमः कटिं पूज्यामि

ऊँ कात्यायन्यै नमः नाभिं पूज्यामि

ऊं जगन्मात्रै नमः जठरं पूज्यामि

ऊं विश्ववल्लभायै नमः वक्षस्थलं पूज्यामि

ऊं कमलवासिन्यै नमः हस्तौ पूज्यामि

ऊं कमलपत्राक्ष्यै नमः नेत्रत्रय पूज्यामि

ऊं श्रियै नमः शिरं पूज्यामि

इसके बाद अष्ट सिद्धियों और अष्ट लक्ष्मी का स्मरण कर उनकी पूजा अवश्य करनी चाहिए. अष्ट सिद्धि-अष्ट लक्ष्मी पूजन बहुत सरल है. बस दो मिनट का समय लगेगा.

अष्ट-सिद्धि पूजा
अंग-देवताओं की पूजा करने के बाद पुनः बाएँ हाथ में चन्दन, पुष्प व चावल लेकर दाएँ हाथ से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-सिद्धियों का भी स्मरण पूजन करें. मन में यह भाव लाएं कि माता के चारों तरफ अष्ट सिद्धि देवियां उपस्थित हैं और आप उनकी पूजा कर रहे हैं.

अष्ट-लक्ष्मी पूजाः

अष्ट-सिद्धियों की पूजा के बाद उपर्युक्त विधि से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-लक्ष्मियों की पूजा चावल, चन्दन और पुष्प से करें.

धूप-समर्पणः
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को धूप समर्पित करें.
श्रीलक्ष्मी-देव्यै धूपं समर्पयामि

दीप-समर्पण
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दीप समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै दीपं समर्पयामि

नैवेद्य-समर्पण
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को नैवेद्य यानी मिठाई आदि समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै नैवेद्यम् समर्पयामि

आचमन-समर्पण/जल-समर्पण
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए आचमन के लिए श्रीलक्ष्मी को जल समर्पित करें.
श्रीलक्ष्मी-देव्यै आचमनीयं जलं समर्पयामि

ताम्बूल यानी पान-समर्पण
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को ताम्बूल (पान, सुपारी के साथ) समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै मुख-वासार्थम् पुंगी फलं युक्तं ताम्बूलं समर्पयामि

(भगवती श्रीलक्ष्मी के मुख को सुगन्धित करने के लिये सुपाड़ी से युक्त ताम्बूल मैं समर्पित करता हूँ.)

दक्षिणा
निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दक्षिणा समर्पित करें.

श्रीलक्ष्मी-देव्यै सुवर्ण-पुष्प-दक्षिणां समर्पयामि।

अर्थः भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं दिवाली के शुभ मुहूर्त में स्वर्ण-पुष्प-रूपी दक्षिणा प्रदान करता हूँ.

प्रदक्षिणाः
अब श्रीलक्ष्मी की प्रदक्षिणा (बाएँ से दाएँ ओर यानी घड़ी की सूइयों के घूमने की दिशा में परिक्रमा) के साथ मन्त्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को फूल समर्पित करें.

प्रदक्षिणा के समय कहें- हे मातेश्वरी! पिछले जन्मों में जो भी पाप किये होते हैं, वे सब प्रदक्षिणा करते समय एक-एक पग पर क्रमशः नष्ट होते जाते हैं. हे देवि! मेरे लिये कोई अन्य शरण देनेवाला नहीं हैं, तुम्हीं शरणदात्री हो. अतः हे परमेश्वरि! दया-भाव से मुझे क्षमा करो. भगवती श्रीलक्ष्मी को मैं प्रदक्षिणा समर्पित करता हूँ.

वन्दना-सहित पुष्पाञ्जलिः

अब वन्दना करें और श्रीलक्ष्मीजी को पुष्प समर्पित करें. पुष्प समर्पित करते हुए माता से प्रार्थना करें-

हे दयासागर माता श्रीलक्ष्मी! हाथों-पैरों द्वारा किये हुये या शरीर या कर्म से उत्पन्न, कानों-आँखों से उत्पन्न या मन के जो भी ज्ञात या अज्ञात अपराध हों, मेरे उन सब अपराधों को आप क्षमा करें. आपकी जय हो, जय हो. मेरी रक्षा करें.

साष्टांग-प्रणामः
श्रीलक्ष्मी को साष्टाङ्ग प्रणाम (प्रणाम जिसे आठ अङ्गों के साथ किया जाता है) कर नमस्कार करें. इसके लिए भूमि पर लेट जाएं एवं आठों अंगों को विनीत भाव में लाकर प्रणाम करें. साष्टांग करते समय यह प्रार्थना करें-

हे भवानी! आप सभी कामनाओं को देनेवाली महालक्ष्मी हैं. हे देवि! आप प्रसन्न और सन्तुष्ट हों. आपको नमस्कार है. इस पूजन से श्रीलक्ष्मी देवी आप प्रसन्न हों. आपको बारम्बार नमस्कार है.

क्षमा-प्रार्थना
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए पूजा के दौरान हुई किसी ज्ञात-अज्ञात भूल के लिए श्रीलक्ष्मी से क्षमा-प्रार्थना करें-

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि,
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।
अनेन यथा मिलितोपचार द्रव्यैः कृत पूजनेन श्रीलक्ष्मी-देवी प्रियताम्।।

मन्त्र अर्थः-
न मैं आवाहन करना जानता हूं, न विसर्जन करने की विधि. पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता. अतः हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो. मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो. यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों.

भगवती श्रीलक्ष्मी को यह सब पूजन सादर समर्पित है. इसके बाद माता की आरती करके प्रसाद वितरण कर लें. माता लक्ष्मी को समर्पित दीपों में से निकालकर कुछ दीप सब जगह प्रज्वल्लित कर दें.

इस प्रकार माता लक्ष्मीजी की विधिवत पूजा होती है. आप इसे जब करेंगे तो पूरी पूजा में करीब पंद्रह मिनट का ही समय लगता है.

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