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थका मांदा रामनारायण अकेला रह गया, मंदिर में लेटते ही उसे नींद आ गयी. आधी रात के व़क्त उसे लगा कि किसी ने जैसे चाबुक फटकारा.

वह चौंककर उठ बैठा. उसने देखा, सामने कोई देवी लाल लाल आखें किये हाथ में चाबुक लेकर खड़ी हैं.

देवी ने कड़क कर पूछा, कौन हो? बिना मुझसे पूछे मेरे मंदिर में लेटने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’’ रामनारायण ने देवी के चरण पकड़ लिये. बोला- ‘‘महामाई, ग़रीब किसान हूँ? शहर जाते हुए जंगल में भटक गया, रात हो गयी थी सो डर से आगे जाने का साहस नहीं कर पाया यहीं रह गया. सवेरा होते चला जाऊँगा.’’

‘‘देवी ने चाबुक परे कर लिया और बोलीं, ठीक है, पर तुम्हें माफ करने की बात लोगों को पता चल गयी तो लोग तो इस मंदिर को सराय ही बना डालेंगे. तुम्हें शाप दिये बिना काम न चलेगा!

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