Draupadi-ke-panch-pati-kyon?
Panchali_Draupadi

कुरूवंश के सहयोग से द्रोणाचार्य ने द्रुपद को पराजित कर उनका आधार राज्य ले लिया था. द्रुपद ने इस अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए यज्ञ से द्रौपदी का प्राप्त किया था.

राजा द्रुपद को अग्निदेव ने बताया था कि द्रौपदी का शूरवीर पति द्रोणाचार्य का वध करेगा. परशुराम के शिष्य द्रोण परम धनुर्धर थे. उन्हें मारने वाला तो उनसे ज्यादा योग्य धनुर्धर होना चाहिए.

द्रुपद पुत्री द्रौपदी का विवाह अर्जुन के साथ करना चाहते थे. इसीलिए द्रुपद ने द्रोपदी के विवाह के लिए कठिन स्वयंवर रखा था. पांडवों का अज्ञातवास पूरा नहीं हुआ था. अतः उन्होंने ब्राह्मण वेश धारण कर रखा था.

जिस स्वयंवर को संसार के श्रेष्ठ क्षत्रिय नहीं जीत पाए उसे एक ब्राह्मण कुमार ने जीत लिया. द्रुपद चिंतित हो गए कि आखिर उनके अपमान का प्रतिशोघ पूरा कैसे होगा? क्या अग्निदेव की बात असत्य साबित हो जाएगी?

तमाम शंकाओं से ग्रस्त पांचाल नरेश ने पुत्र धृष्टद्युमन को पता लगाने को भेजा. हालांकि उन्हें पांडवों के चाल-ढ़ाल को देखकर आशंका तो हो रही थी कि ये ब्राह्मण नहीं हैं.

द्रौपदी का भाई धृष्टद्युम्न पांडवों के पीछे पीछे छुपते-छुपाते लग गया. इधर द्रौपदी को जीतकर अर्जुन कुटिया पर पहुंचे. उनके यह कहने पर कि वे भिक्षा लाए हैं, उन्हें बिना देखे ही कुंती ने कुटिया के अंदर से ही कहा कि सभी मिलकर उसे ग्रहण करो.

जब वे भीतर आये तो पुत्रवधू को देखकर सोचा यह मैंने क्या कह दिया. पर अपने वचनों को निरर्थक जाने और असत्य होने से बचाने के लिये कुंती ने पांचों पांडवों को द्रौपदी से विवाह करने के लिए कहा.

धृष्टद्युमन ने उन सबको अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया. पांचों भाई आए. इससे द्रुपद ताड़ गए के ये पांडव ही हैं. इससे उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई किंतु यह सुनकर वह चिंतित हो गए पांचों द्रौपदी से विवाह करने जा रहे हैं.

वह तो अर्जुन से हे द्रौपदी का विवाह करना चाहते थे. यह तो शास्त्र और नियम विरुद्ध है. द्रुपद को क्रोध आ गया किंतु इन पांडवों से वह पहले हार चुके थे और अब तो इन्हें पुत्री भी दे दी है. द्रुपद चिंता में पड़ गए कि यह विधि का कैसा खेल है.

द्रुपद गहन गहन चिंता और शोक में डूबे थे तभी दैवयोग से व्यास मुनि अचानक प्रकट हुए. द्रुपद ने व्यास मुनि को प्रणाम किया तो उन्हें देखकर व्यासजी ने अनुमान लदगा लिया. व्यासजी ने द्रुपद को द्रुपद को एकांत में आने को कहा.

एकांत पाकर द्रुपद से व्यास मुनि ने कहा- राजन आपका उहापोह मैं समझ रहा हूं. आपकी शंका के निवारण हेतु ही दैवयोग से उपस्थित हुआ हूं. आप इसे प्रभु इच्छा समझकर स्वीकार करें.

व्यास मुनि ने कहा- हे महाराज द्रुपद आप अपनी शंका और शोक त्याग दें. द्रोपदी के पति ये पांच पांडव और कोई नहीं शापित इंद्र हैं. द्रौपदी भी इसी प्रकार की आत्मा है.

द्रुपद यह सुनकर थोड़े शांत हुए. उन्होंने व्यासजी से कहा- मुनिवर मैं इसे दैवयोग समझकर ही स्वीकार कर रहा हूं. मुझे अंदाजा था को जो हुआ है उसमें कुछ न कुछ रहस्य अवश्य है. प्रभु आप वह रहस्य बताने की कृपा करें.

व्यासजी बोले- एक बार पांच इन्द्र बहुत अहंकारी बन गए. वह किसी का सम्मान नहीं करते थे. एकबार उन्होंने रूद्र का भी अपमान कर दिया. रूद्र उनपर क्रोधित हो गए.

रूद्र ने उन्हें शाप दे दिया कि उन्हें देवत्व का अहंकार हो गया है इसलिए तुम पांचों को धरती पर मानव-रूप धारण करना होगा और सांसारिक कष्टों को भोगना होगा.

रुद्र ने कहा- तुम मानवरूप में क्रमश: धर्म, वायु, इन्द्र तथा दोनों अश्विनीकुमारों के अंशरूप में जाओगे. भूलोक पर तुम्हारा विवाह स्वर्गलोक से उतरी लक्ष्मी के मानवी रूप से होगा. वह मानवी द्रौपदी है.

व्यासजी बोले- महाराज रुद्र ने उन पाचों की भिन्न भिन्न पत्नियों के नाम नहीं कहे. इसका भी एक कारण है. राजन इस व्यवस्था के पीछे भी एक रहस्य है. वह भी आपको बताता हूं.

द्रौपदी ने इस जन्म में आने से पूर्व भगवान शंकर को प्रसन्न कर वरदान मांगा कि मेरे पति रूपवान, बलवान, बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ और धनुर्धर हो. इन गुणों में वे संसार में सर्वश्रेष्ठ हो.

शिवजी द्रोपदी की बात सुनकर हंसे. महादेवजी बोले- पुत्री, इतने सरे गुण एक साथ एक व्यक्ति में तो मिलना संभव ही नहीं. द्रोपदी नहीं मानी. तो महादेव ने कहा- तुम्हारी यही इच्छा तो यही सही. तुमने पांच वर मांगे हैं तो तुम्हारे पांच पति होंगे.

रुद्र द्वारा शापित और धरती पर भेजे गये ये पांचों पांडव उपरोक्त गुण संपन्न इन्द्र ही हैं और द्रौपदी का उन सभी की पत्नी बनना पूर्व नियत है. इसे स्वीकार करें.

व्यास मुनि द्वारा यह वचन सुनकर द्रुपद को संतोष हुआ. उनके सुझाव पर द्रौपदी का विवाह क्रमश: पांचों पांडवों से कर दिया गया. द्रौपदी पांचाली बन गयी.

संकलनः सीमा श्रीवास्तव
संपादनः राजन प्रकाश

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here