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चिंता न करें. कल उस व्यक्ति के साथ कोई तीसरा व्यक्ति उसी तर्क का सहारा लेकर पीड़ित करेगा. यही क्रम चलता रहेगा. ऐसे में निराशा के अलावा कोई और अपेक्षा रखना उचित ही नहीं.
जो सरल हृद्य होते हैं, सच्चे मन के होते हैं वे किसी को पीड़ित करने के लिए खोखले तर्क नहीं खोजते. हो सकता है उनकी तरक्की की गति थोड़ी कम हो लेकिन स्थाई होती है. स्वयं से कब तक छल करेगा कोई!
जीवन का कोई आह्वान नहीं करता. जीवन को छोड़ देने, जीवन से पलायन करने, जीवन को तोड़ देने और नष्ट कर देने की बहुत-बहुत चेष्टाएं जरूर की गयी हैं. इस लोक और मोक्ष वाले परलोक दोनों को यहीं जीने का प्रयास कीजिए.
स्वर्गकी जो कल्पना आपके मन में आती हो उसके वाशिंदे तो तभी हो सकते हैं जब आपमें देवत्व आए. अपने अंदर देवत्व का भाव जगाए रखिए. संभव है कि कुछ देर लगे लेकिन स्वर्ग का संतोष भी यहीं मिलने लगेगा.
लालच, घृणा, कपट, हिंसा, मोह इनसे जरा सी दूरी बनाने का प्रयास करके तो देखिए. इस प्रयास के दौरान ही आपको सुखद अनुभूति होने लगेगी. संतोष की अनुभूति. यही तो देवत्व है.
संकलनः अऩुराग शर्मा
संपादनः राजन प्रकाश
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