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देखने में वे तीनों साधारण पत्थर लगते थे. नारदजी ने उन्हें अपनी झोली में रख लिया. अचानक उनके मस्तिष्क में एक विचार आया.

वह नगर में पहुंचे तो एक घर से रोने की आवाजें आ रही थीं. नारदजी वहाँ पहुंचे. पूछने पर पता चला कि नगर का बड़ा सेठ मर गया है. उसके परिजन बिलख रहे हैं. उसके कृपापात्र भी रो रहे हैं.

नारदजी ने तुरंत एक सिद्ध पाषाण निकाला और कामना की- “नगर सेठ पूरे सौ साल जिए।”

इतना कहते ही सेठ तुरन्त आँखें मलता हुआ उठ बैठा. यह देख कर नारदजी वहां से खिसक गए. थोड़ी दूर चलने पर उन्हें एक बूढ़ा भिखारी मिला. उसके सारे शरीर में कोढ़ था.

नारदजी ने तुरन्त दूसरा पाषण निकाला और कामना की- “यह व्यक्ति स्वस्थ हो जाये और लखपति बनकर सौ वर्ष जिए.”

नारदजी के इतना कहते ही बूढ़े भिखारी की काया पलट गई. उसका कोढ़ ठीक हो गया और घर धन दौलत से भर गया. सभी लोग उसे देख कर हैरान ही गए.

थोड़ी ही देर में नारदजी गंगा तट पर पहुँचे. वहां पहुंच कर उन्होंने तीसरे पाषण को हाथ में लिया और बोले- मै चाहता हूं मुझे तीनों सिद्ध पाषाण वापस मिल जाएँ.”

इतना कहते ही तीनों सिद्ध पाषाण उनके हाथ में आ गए.

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