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तीरथ के पड़ोसी खुसर-फुसर करने लगे कि इनके घर में जरूर कोई परेशानी है तभी तो दोनों दिन-रात काम करते हैं और थके-थके रहते हैं. किसी तरह छ: महीने बीतने पर उन्होंने सौ रुपये पूरे कर लिए.

लेकिन चांदी का रुपया जोड़ने के चक्कर में तीरथ और कल्याणी को पैसे जोड़ने का लालच पड़ चुका था. दोनों को भविष्य के लिए सौ सिक्के कम लगने लगा. उन्होंने तय किया कि अच्छे भविष्य के लिए कम से कम सौ सिक्के और जोड़ने होंगे.

उन्होंने आगे भी उसी तरह मेहनत जारी रखी. पैसे कमाने की धुन में पति-पत्नी में मामूली बातों पर किचकिच भी होने लगी. अगर एक बर्तन भी गलती से फूट जाता तो पति-पत्नी को उसमें बड़ा नुकसान दिखता. दोनों झगड़ने लगते. इधर पड़ोसियों की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी.

एक पड़ोसन से न रहा गया. वह कल्याणी के घर की थाह लेने के लिए नजर रखने लगी. एक दोपहर को वह कल्याणी के घर जा धमकी. कल्याणी बर्तन बनाने में व्यस्त थी. उसने कल्याणी से पूछा कि वह पहले की तरह रोज शाम गुनगुनाती क्यों नहीं?

कल्याणी ने बात टालने की कोशिश की लेकिन पड़ोसन मानने वाली कहां थी. कल्याणी के मन की बात निकालने के लिए पड़ोसन पुचकारते हुए कहा- तुम बहुत थक जाती हो. मेरे पास समय रहता है. कहो तो मैं रोज तुम्हारी मदद कर दिया करूं.

कल्याणी प्यार भरे शब्द सुनकर पिघल गई. उसने सारा किस्सा कह सुनाया. पड़ोसन जोर-जोर से हंसने लगी. उसे हंसता देखकर कल्याणी को गुस्सा आया. कल्याणी ने कहा- किसी की परेशानी पर खुश नहीं होना चाहिए. दूसरो के कष्ट पर हंसने वालों को ईश्वर पसंद नहीं करते.

अब पड़ोसन की बारी थी. उसने कल्याणी से कहा-” बहन, तुम दोनों जिस चक्कर में पड़े उसमें पड़ा इंसान कहीं का नहीं रहता. उसके अच्छे गुण धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं. रोज बांसुरी बजाने वाला तुम्हारा पति बिना बात झगड़ता है.
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2 COMMENTS

    • आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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