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वे क्रोध में मर्यादा भूल कर भगवान शंकर से युद्ध करने लगे. पांडवों द्वारा जो भी अस्त्र-शस्त्र चलाये गये वे शिवजी के शरीर में जा कर जाने कहां विलीन हो गये.

चूंकि पांडव श्रीकृष्ण की शरण में थे और महादेव हरिभक्तों की रक्षा को स्वयं तत्पर रहते हैं. इसलिए शांत स्वरूप भगवान शिव ने कहा- तुम श्रीकृष्ण के उपासक हो इसलिए क्षमा करता हूं, अन्यथा सभी वध के योग्य हो.

मुझ पर आक्रमण के इस अपराध का फल तुम्हें कलियुग में जन्म लेकर भोगना पड़ेगा. ऐसा कहकर भगवान शंकर अदृश्य हो गए. दुखी पांडव पापमुक्ति की राह पूछने भगवान् श्रीकृष्ण की शरण में आए.

अपने हथियार गंवा चुके और निराश तथा दुःखी पांडवों ने श्रीकृष्ण के साथ एकाग्र मन से शंकर जी की स्तुति की जिससे प्रसन्न हो भगवान शंकर प्रकट हुए और उनसे वर मांगने को कहा.

पांडवों की ओर से भगवान् श्रीकृष्ण बोले– हे भगवन, पांडवों के जो शस्त्रास्त्र आपके शरीर में विलीन हो गए हैं, उन्हें वापस कर दीजिए. इन्हें आपने जो श्राप दे दिया है उससे भी मुक्त कर दीजिए.

आदि देव भगवान शिवजी ने कहा– हे श्रीकृष्ण! उस समय मैं आपकी माया से मोहित था. उसी माया में पड़कर ही मैंने यह शाप दे दिया. मेरा वचन तो नहीं बदल सकता. मुक्ति का मार्ग बताता हूं.

पांडव तथा कौरव अपने अपने अंशों से कलियुग में जन्म लेकर अपने पापों का फल भोगकर अपने पापों और मेरे शापों से मुक्त हो जायेंगें. युधिष्ठिर वत्सराज का पुत्र बनकर पैदा होगा.
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