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प्रभु शरणम् को अपना सबसे उपयोगी धार्मिक एप्प मानने के लिए लाखों लोगों का हृदय से आभार- 100 THOUSAND CLUB में शामिल हुआ प्रभु शरणम्
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भाद्रपद शुक्लपक्ष की पूर्णिमा से ही श्राद्ध कर्म आरंभ हो जाते हैं. प्रतिपदा तिथि प्रथम श्राद्ध का दिवस है. आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण और उपयोगी बातें बिंदुवार बताएंगे.

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श्राद्ध क्यों जरूरीः-

भारतीय शास्त्रों में देवकार्य अर्थात पूजा-हवन, व्रत, यज्ञ को जितनी प्रमुखता दी गई है उससे कम महत्ता पितृपूजा को नहीं है. श्राद्धकर्म परम कल्याणकारी कार्य है. पितरों की संतुष्टि के लिए विधिपूर्वक श्राद्धकर्म करना चाहिए.

जो व्यक्ति सिर्फ देवकार्य करते हैं लेकिन श्राद्धकार्य नहीं करते उनके देवकार्य का वह लाभ नहीं प्राप्त होता जो होना चाहिए था.

सरल भाषा में समझें तो जिस घर में बड़े-बूढ़े भूखे प्यासे हैं उस घर में आकर देवता भोज कैसे ग्रहण करेंगे. वैसे तो पितरों को प्रतिदिन जल से श्राद्ध करना चाहिए.

जो ऐसा नहीं कर पाते उनके लिए श्राद्ध के विशेष दिन बताए गए हैं. जो इन दिनों में भी श्राद्ध नहीं करते, पितृगण उनका रूधिर यानी रक्तपान करते हैं.

श्राद्ध की महत्ता ऐसी है कि माता सीता ने पितरों के लिए पिंडदान और श्राद्ध किया था. सप्तर्षियों में शामिल अगस्तय ऋषि ने एक बार वृक्ष से उलटा लटककर रोते हुए अपने पितरों को देखा. अपने पुण्य कर्मों से उन्हें स्वर्ग प्राप्त हुआ था किंतु फिर भी वे दुखी थे.

अगस्त्य ऋषि विवाह नहीं कर रहे थे. उनके पितरों को आशंका थी कि यदि वंश समाप्त हो गया तो उन्हें श्राद्ध-तर्पण नहीं मिलेगा इससे उन्हें स्वर्ग से निष्कासित होकर इसी तरह दुखी रहना पड़ेगा. पितरों द्वारा श्राद्ध जैसे पितृकार्य की महत्ता सुनने के बाद महर्षि अगस्त्य को निर्णय बदलना पड़ा था.

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