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रावण को प्रणाम कर मेघनाद मायावी छद्मभेष धारण कर तुरंत ही आकाश,पाताल समेत सभी लोकों का चक्कर लगा आया पर उसे वे कमलपुष्प कहीं नहीं मिले.
अंत में वह पृथ्वी पर उस कलमपुष्प को तलाशने लगा. खोजते-खोजते उसे सरयू की धारा में उसी प्रकार की कुछ पंखुडियां बहती दिखीं.
उन पंखुडियों के उद्गम स्थान को खोजता-खोजता मेघनाद राजा दशरथ के अयोध्या स्थिति उपवन के एक सरोवर में पहुंच गया.
राजमहल का वह सरोवर ऐसे अद्भुत,अद्वितीय कमल-पुष्पों से भरा पड़ा था. मेघनाद की खोज पूरी हुई थी. इसलिए उन कमल पुष्पों को देखकर मेघनाद की प्रसन्नता की सीमा न रही.
बिना विलंब किए उसने पुष्प तोडना शुरू कर दिया. उपवन के रखवाले वहां से गुजरे.
अचानक किसी अजनबी को महाराज दशरथ के बगीचे में से पुष्प तोड़ते देखकर रखवालों ने पास ही खेल रहे श्रीराम-लखन आदि को खबर कर दी. वे तुरंत आए और मेघनाद को ललकारा.
मेघनाद ने उन्हें बालक समझकर उनका उपहास कर दिया और चेतावनी देने पर भी नहीं माना. मेघनाद जिन्हें बालक समझ रखा था वे साधारण मानव तो थे नहीं.
लखन लला ने मेघनाद को पकड़कर बांध लिया. क्रोधित मेघनाद बंदी बन जाने के बाद अपशब्द कहने लगा इससे लक्ष्मणजी के क्रोध की सीमा पार हो गई. वह उसका वध करने को उतारू हो गए और अपने तुणीर में से बाण निकालने लगे.
लक्ष्मणजी जब मेघनाद को वहीं मार देने पर उतारू हो गए तो श्रीरामजी ने उन्हें शांत कराया.
श्रीराम ने कहा- अनुज लक्ष्मण दंड निर्धारण का अधिकार राजा का होता है. इसलिए इसे पिताजी महाराज के पास लिए चलते हैं. वह जो दंड निर्धारित करेंगे वह दंड दिया जाएगा.
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