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उन्हें भी तो इस सृष्टि में से ही साथी चाहिए जिनके साथ अपने हृदय की बात कह सुन सकें. पर ईश्वर तो यह बात उसी से करेंगे जो इसके योग्य स्वयं को बनाए.

भगवान स्वयं आपसे मिलने को व्याकुल हो जाएंगे आप स्वयं को उस योग्य बनाकर तो देखिए. भगवान में अहं जैसी कोई चीज है ही नहीं. उस मैल में तो इंसान लोटता है और इतराता भी है.

भक्त अपने कर्मों से उन्हें स्वयं आने को विवश कर सकता है. सच्चे भक्त यह कहने के अधिकारी हो जाते हैं कि हर बार हम ही क्यों जाएं, इस बार क्यों न प्रभु ही हमसे मिलने आएं और प्रभु आते भी हैं. उदाहरण भरे पड़े हैं.

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