दैत्यराज दंभ संतानहीन थे. बहुत समय तक कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई तो उसने संतान प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु को प्रसन्न के लिए कठिन तप आरंभ किया.

दैत्यराज के तप से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर प्रकट हुए. दंभ ने भगवान की स्तुति की. श्रीहरि ने दंभ से वरदान मांगने को कहा.

दंभ ने मांगा- प्रभु यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे अपने समान तेजस्वी और बलवान पुत्र का वरदान दीजिए जो तीनों लोकों में अजेय और महापराक्रमी हो. श्रीहरि तथास्तु बोलकर अंतर्याजोन हो गए.

श्रीहरि के आशीर्वाद से दंभ के यहां एक बलशाली पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम शंखचूड़ पड़ा. आरंभ में शंखचूड़ बहुत धर्मवान था. उसने पुष्कर में जाकर घोर तप किया.

ब्रह्माजी उसके तप से प्रसन्न हुए. ब्रह्मा ने वर मांगने को कहा. शंखचूड ने ब्रह्मदेव से वर मांगा कि वह देवताओं के लिए अजेय हो जाए. ब्रह्माजी ने शंखचूड को इच्छित वरदान के साथ-साथ नारायण कवच भी प्रदान किया.

शंखचूड का विवाह धर्मध्वज की परम तेजस्वी और साध्वी कन्या तुलसी से हुआ. शंखचूड का जन्म श्रीहरि के आशीर्वाद से हुआ था. ब्रह्मा से उसने वरदान लिया था. यह सोचकर शंखचूड में अभिमान आ गया.

ब्रह्मा और विष्णु के वरदान के मद में चूर दैत्यराज शंखचूड ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया. शंखचूड़ के अत्याचारों से त्रस्त होकर देवता भगवान विष्णु की शरण में गए.

श्रीहरि ने कहा- मैंने स्वयं दंभ को अपने समान परम बलशाली पुत्र का वरदान दिया है. इसलिए शंखचूड़ के अत्याचारों से केवल महादेव ही मुक्ति दिला सकते हैं.

देवताओं ने महादेव को जाकर अपना कष्ट सुनाया और श्रीहरि का आदेश भी बताया. महादेव देवताओं के दुख दूर करने को तैयार हो गए. महादेव और शंखचूड़ के बीच घमासान युद्ध आरंभ हुआ.

शंखचूड़ के पास नारायण कवच था. इसके साथ-साथ उसकी पत्नी तुलसी ने पतिव्रत धर्म के प्रभाव से शंखचूड़ को एक अभेद्य कवच से युक्त कर दिया था. इस कारण महादेव उसका वध नहीं कर पा रहे थे.

शंखचूड़ के साथ हजारों वर्षों तक युद्ध करते-करते महादेव भी परेशान हो गए. देवताओं ने श्रीहरि से शंखचूड़ के वध की राह निकालने की प्रार्थना की. श्रीविष्णु ब्राह्मण रूप बनाकर शंखचूड के पास गए और नारायण कवच दान में ले लिया.

अब शंखचूड का वध करने के लिए तुलसी द्वारा पतिव्रत के प्रभाव से बनाए कवच को भेदना जरूरी था. श्रीहरि ने शंखचूड़ का रूप धारण किया और तुलसी के पास गए.

हजारों वर्ष के बाद पति को लौटता देखकर तुलसी प्रसन्न हुईं और पति के साथ पत्नी समान आचरण किया. तुलसी का पतिव्रत खंडित हो गया. इसके खंडित होते ही कवच समाप्त हुए.

महादेव ने त्रिशूल के प्रहार से शंखचूड़ का वध कर दिया. महादेव के त्रिशूल के प्रहार से नारायण के समान बलशाली शंखचूड की हड्डियां टूर हुई तो शंख का जन्म हुआ.

शंखचूड़ विष्णु भक्त था इसलिए श्रीहरि एवं अन्य देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है. परंतु महादेव ने उसका वध किया था इसलिए उन्हें शंख से जलाभिषेक करना निषिद्ध है. इसी कारण शिवजी को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है.

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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