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महादेव ने पाशुपत अस्त्र का संधान किया और तीनों पुरों को एकत्र होने का आदेश दिया. उस अमोघ बाण में विष्णुदेव के साथ, वायु, अग्नि और यम भी अपनी शक्तियों समेत सम्मिलित होकर सवार हुए. यह असंभव बाण था.
अविजित् नक्षत्र में उन तीनों पुरियों के एकत्रित होते ही महादेव ने बाण चलाया. तीनों पुर भस्म हो गए और उनके स्मावी त्रिपुरासुरों का संहार हुआ. वह कार्तिक पूर्णिया का दिन था. देवताओं ने हर्षोल्लास में शिव की नगरी काशी में शिवजी की पूजा की और पर्व मनाया जिसे देव दीपावली कहा जाता है.
(सौरपुराण, शिवपुराण और महाभारत के कर्णपर्व की कथा)
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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