एक नगरी थी. उसका नाम था विशाला. विशाला नगरी का राजा था पदमनाभ. पद्मनाभ चंड़ी देवी का बड़ा भक्त था. कहते हैं कि इस नगरी को मां चंड़ी का संरक्षण प्राप्त था.

इसे छोटी सी सुंदर नगरी में में अर्थदत्त नाम का एक बड़ा साहूकार रहता था. साहूकार धर्म सेवी और परोपकारी धनिक था, अर्थदत्त के एक ही संतान थी, वह भी एक कन्या.

अर्थदत्त की बेटी का नाम था अनंगमंजरी. वह देवी रति की तरह बहुत ही सुन्दर थी. यौवनावस्था आने पर साहूकार ने उसका विवाह एक अपने ही परिचित धनी साहूकार के बेटे मणिवर्मा के साथ कर दिया.

मणिवर्मा अपनी सुंदरी पत्नी को बहुत चाहता था, पर पत्नी उसे उतना तो क्या उसे ज़रा भी प्यार नहीं करती थी. एक बार मणिवर्मा अपने किसी कारोबारी काम के लिये एक दिन को घर से बाहर गया.

अनंगमंजरी की राजपुरोहित के लड़के कमलाकर पर निगाह पड़ी तो वह उस सलोने से लड़के को चाहने लगी. पुरोहित का लड़का भी अनंगमंजरी के रूप पर मुग्ध हो गया.

अनंगमंजरी उस कमलाकर के प्रेम में इस तरह डूबी कि उसने महल के बाग़ में जाकर नगर रक्षिका चंडी देवी को प्रणाम कर कहा, “यदि मुझे इस जन्म में कमलाकर पति के रूप में न मिले तो अगले जन्म में तो अवश्य ही मिले.

इतना कहकर अनंगमंजरी ने अपनी साड़ी फाड़ी, उसका फंदा बनाया और आव देखा न ताव और अशोक के पेड़ से फाँसी पर लटक कर मरने को तैयार हो गयी.

तभी उसकी सखी वहां आ गयी और बोली. तू इस तरह व्यर्थ में अपना जीवन क्यों गंवाती है, अगले जन्म तक जाने के क्या आवश्यकता मैं इसी जन्म में मेल करा दूंगी. और वह उसे यह वचन देकर ले गयी कि वह कल ही कमलाकर से मिला देगी.

अनंगमंजरी के सखी सबेरे सवेरे कमलाकर के यहाँ गयी और दोनों के बगीचे में मिलने का प्रबन्ध कर आयी. कमलाकर तो स्वयं ही अनंग मंजरी के प्रेम में पागल था, तत्काल तैयार हो गया.

नियत समय पर कमलाकर आया और उसने अनंगमंजरी को बगीचे में पेड़ के नीचे खड़ी देखा. वह विह्वल हो कर मिलने के लिए दौड़ा. उधर मारे खुशी के अनंगमंजरी के हृदय की गति ही रुक गयी और वह मर गयी.

उसे मरा देखकर कमलाकर का भी दिल दुःख से फट गया और वह भी वहीं मर गया. संयोग से उसी समय मणिवर्मा भी वहां आन पहुंचा. अपनी स्त्री को पर पुरुष के साथ मरा देखकर मणिवर्मा बड़ा दु:खी हुआ.

बस कुछ ही क्षणों तक मणिवर्मा जीवित रहा, वह अनंगमंजरी को इतना चाहता था कि उसका वियोग न सहने से वही पर उसके भी प्राण निकल गये. अब बगीचे में तीन शव पास पास पडे थे.

बात जंगल की आग की तरह फैल गयी कि बागीचे में जाने कैसे और क्योंकर तीन लोग अचानक मर गये. यह सब देश सुन कर चारों ओर हाहाकार मच गया. लोग जमा हो गया.

कहते हैं कि कुछ देर बाद राज पुरोहित आया, भीड़ को दूर किय गया. पुरोहित के आदेश पर ब्राह्मणों ने नगर रक्षिका भगवती चंड़ी का आवाहन ने किया और वे वहां प्रकट हुई. चंडीदेवी ने सबको जीवित कर दिया.

इतना कहकर बेताल बना रुद्र किंकर बोला, “राजन्, यह बताओ कि प्रेम राग- विराग भावनात्मक लगाव की पराकाष्ठा दिखाने वाले वाले इन तीनो चरित्रों में से विराग में इन तीनों में सबसे ज्यादा अंधा कौन था?”

राजा ने कहा- मेरे विचार में मणिवर्मा था क्योंकि वह अपनी पत्नी को पराए आदमी को प्यार करते देखकर भी शोक से मर गया.

अनंगमंजरी और कमलाकर तो अपने प्रेम के अचानक मिलने की खुशी से मरे जो स्वाभाविक हो भी सकता है उसमें अचरज की कोई बात नहीं थी.
(भविष्य पुराण)

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