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राजा ने उसे शर्त याद दिलाई, लेकिन वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं था.
राजा ने समझाया एकादशी व्रत रख लो. इससे वन-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाओगे लेकिन वह एक ही रट लगाए रहा- महाराज! मैं यदि भूख से मरा तो आपको दोष लगेगा.
मजबूरन राजा ने उसे अन्न दिया. वह रोज की तरह नदी पर पहुंचा. स्नानकर भोजन पकाया.
फिर उसने भगवान को पुकारा- आओ भगवान! भोजन तैयार है.
भगवान चतुर्भुज रूप में आए, प्रेम से भोजन किया फिर अंतर्ध्यान हो गए. वह आदमी अपने काम पर चला गया.
पंद्रह दिन बाद फिर एकादशी आई. इस बार उसने राजा से दुगुना अन्न मांगा.
राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं. इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता. मैं तो पिछली एकादशी को भूखा ही रह गया.
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